धार्मिक आंदोलन ( भक्ति आन्दोलन )
धार्मिक आंदोलन ( भक्ति आन्दोलन )
भक्ति आन्दोलन
- प्राचीन काल से ही हिन्दुओं को विश्वास था कि मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग हैं-कर्म, ज्ञान और भक्ति ।
- ईश्वर के प्रति अत्यधिक प्रेम और श्रद्धा की भावना को भक्ति कहते हैं। इसमें बताया गया है कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में
- निवास करता है इसलिए इसे प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन इसकी प्राप्ति के लिए सभी मानसिक विकारों से मुक्त होना चाहिए।
- भक्ति में गुरु को श्रेष्ठ स्थान दिया गया है लेकिन गुरु मोक्ष नहीं दिला सकता। मोक्ष के लिए ईश्वर की कृपा चाहिए
- और ईश्वर कृपा के लिए प्रपत्ति मार्ग का अनुसरण किया जाय, इसका तात्पर्य है ईश्वर के प्रति समर्पण।
भक्ति आंदोलन के कारण
- मध्यकाल में भक्ति आंदोलन और उसकी लोकप्रियता का प्राथमिक कारण हिन्दू धर्म और समाज की अधोगति थी।
- इसके अतिरिक्त भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना और इस्लाम के आगमन की प्रेरणा का कार्य किया।
- इस्लाम धर्म की एकेश्वरवाद, भाईचारा, समानता जैसे विचारधारा निम्न वर्ग के हिन्दुओं को आकर्षित किया जिससे वह इस्लाम धर्म स्वीकार करने लगे। ऐसी स्थिति में हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार की आवश्यकता थी।
भक्ति आंदोलन के संतों के उपदेशों को दो भागों में बांटा जा सकता है–
- सकारात्मक उपदेश-इसमें एक ईश्वर पर विश्वास और उसकी आराधना पर बल दिया। गुरु सेवा पर बल दिया गया। भाईचारे और समानता पर बल दिया।
2. नकारात्मक उपदेश-इसमें मूर्तिपूजा, पुरोहित, यज्ञ और अन्य वाह्य आडम्बर का विरोध, छुआछूत का विरोध।
भक्ति आंदोलनों के महत्वपूर्ण संत
1. दक्षिण भारत के संत
- रामानुजाचार्य
- निम्बार्काचार्य
- माध्वाचार्य
2. उत्तर भारत के संत
- रामानंद
- कबीर दास
- संत रैदास
- गुरुनानक
- बललभनाथ
- विठ्ठलनाथ
- सूरदास
- चैतन्य
- मीराबाई
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