राजस्थान में किसान आन्दोलन ( Part :- 2 ) | ExamSector
राजस्थान में किसान आन्दोलन ( Part :- 2 )

राजस्थान में किसान आन्दोलन ( Rajasthan me Kishan Aandoln )

Part = 2

राजस्थान में किसान आन्दोलनों के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों में देश भर की बदली राजनीतिक परिस्थितियाँ, अंग्रेजों का आतंक, रियासतों की अव्यवस्था, जागीरदारों का शोषक रवैया एवं देश भर में चल रही राजनीतिक गतिविधियाँ महत्त्वपूर्ण थीं।

अलवर किसान आन्दोलन –

  • अलवर रियासत में किसानों की खड़ी फसलों में सूअरों द्वारा नुकसान पहुँचाने पर भी उन्हें मारने पर प्रतिबंध था। इस समस्या के विरोध में 1921 ई. में किसानों ने आन्दोलन किया जिसके फलस्वरूप सूअर मारने की अनुमति दे दी गई।

बूंदी किसान आन्दोलन–

  • लाग-बाग, बेगार प्रथा व लगान की ऊँची दरों के विरोध में बूंदी के किसानों ने आन्दोलन प्रारम्भ किया जिसका नेतृत्व पं. नयनूराम शर्मा ने किया। इस आन्दोलन के दौरान ‘डाबी’ नामक स्थान 2 अप्रैल, 1923 को किसानों की सभा में ‘झण्डागीत’ गाते नानक भील की गोली हत्या कर दी गई। बूंदी में 1936 में एक बार पुनः किसान आन्दोलन हुआ।

नीमूचणा किसान आन्दोलन —

  • बढ़ी हुई लगान दरों के विरोध में 14 मई, 1925 को अलवर के नीमूचणा नामक स्थान पर किसानों की सभा पर अंधाधुंध फायरिंग में सैकड़ों किसान मारे गये। गांधीजी ने इसे ‘दूसरा जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड’ कहा। इस आन्दोलन में अंततः किसानों की माँगें मान ली गईं।

मेव किसान आन्दोलन —

  • अलवर एवं भरतपुर रियासत के मेव किसानों ने बढ़ी हुई लगान देने से इंकार करते हुए 1932 ई. में आन्दोलन प्रारम्भ किया जिसका नेतृत्व डॉ. मोहम्मद अली ने किया।

सीकर व शेखावाटी में किसान आन्दोलन —

  • जयपुर रियासत में सीकर ठिकाने के ठाकुर कल्याणसिंह द्वारा बढ़ी हुई दर से लगान वसूलने पर राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा (1931) के तत्वाधान में ‘पलथाना’ में जाट सम्मेलन 1933 ई. में आयोजित किया।
  • इसके बाद 13 अगस्त, 1934 को एवं तत्पश्चात 15 मार्च, 1935 को हुए किसानों व जागीरदारों के मध्य समझौते का पालन न करने पर इस मुद्दे को अखिल भारतीय स्तर पर तथा जून, 1935 ई. को प्रश्न के माध्यम से ‘हाऊस ऑफ कॉमन्स’ में उठाया गया फलस्वरूप जयपुर महाराजा की मध्यस्थता में समझौता हुआ।
  • शेखावाटी आन्दोलन ‘सीकर आन्दोलन’ का ही विस्तार था जिसमें झुंझुनूँ एवं चूरू क्षेत्र के किसानों द्वारा विभिन्न स्थानों पर सामन्तों एवं ठाकुरों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई गई।

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