राजस्थान में किसान आन्दोलन ( Part :- 3 )
राजस्थान में किसान आन्दोलन
Rajasthan me kisan andolan
Part = 3
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राजस्थान में किसान आन्दोलन Part = 1
राजस्थान में किसान आन्दोलन Part = 2
- राजस्थान में किसान आन्दोलनों के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों में देश भर की बदली राजनीतिक परिस्थितियाँ, अंग्रेजों का आतंक, रियासतों की अव्यवस्था, जागीरदारों का शोषक रवैया एवं देश भर में चल रही राजनीतिक गतिविधियाँ महत्त्वपूर्ण थीं।
मारवाड़ में किसान आन्दोलन (1923-1947)
- ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ ने जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मादा पशुओं के राज्य से बाहर भेजने के मुद्दे पर आन्दोलन किया जिसके फलस्वरूप मादा पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा। मारवाड़ हितकारिणी सभा’ ने उस समय प्रचलित 136 प्रकार की लागें व बेगार प्रथा से किसानों को मुक्ति दिलाने हेतु पुनः आन्दोलन चलाया। जयनारायण व्यास ने तरुण राजस्थान समाचार पत्र व मारवाड़ की दशा एवं ‘पोपा बाई की पोल’ नामक पेम्पलेटों के माध्यम से जागीरदारों के जुल्मों को उजागर किया।
- 7 सितम्बर 1939 को ‘लोकपरिषद’ के नेतृत्व में किसानों ने लाग-बाग की समाप्ति हेतु आन्दोलन किया व लाग-बाग देना बंद कर दिया। जैतारण, बिलाड़ा व सोजत के जागीरदारों ने लोक परिषद के कार्यकर्ताओं को अपने क्षेत्र में मीटिंग न करने देने का निर्णय लिया।
- इसके बाद 28 मार्च, 1942 को लाडनूं (नागौर) में उत्तरदायी शासन दिवस’ मनाने हेतु एकत्र ‘लोकपरिषद’ के कार्यकर्ताओं पर लाठियों व भालों से प्रहार किये।
डाबड़ा कांड (डीडवाना)
- 13 मार्च, 1947 को डाबड़ा में आयोजित किए जा रहे किसान सम्मेलन में भाग लेने जा रहे ‘लोकपरिषद’ व ‘किसान सके नेताओं को जागीरदार के लोगों ने घेरकर मारा-पीटा तथा डाबड़ा में पन्नाराम चौधरी व उसके पत्र मोतीराम को इन नेताओं को शरण देने के कारण मार दिया। डाबड़ा के मुख्य आयोजक मथुरादास माथुर ने अपने उद्गार में कहा था-“आधी शताब्दी तक राजनैतिक जीवन में रहते हुए जब पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो सबसे अधिक झकझोरने वाली घटना डाबड़ा की ही लगती है।”
- जून 1948 को जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ में मंत्रिमण्डल बना तथा 6 अप्रैल, 1949 को मारवाड़ टेनेन्सी एक्ट, 1949′ पारित हुआ जिसमें किसानों को खातेदारी अधिकार प्राप्त हो गये।
माप तौल आन्दोलन-
- जोधपुर रियासत में 100 तौले के सेर (माप) को 80 तौले में परिवर्तित करने पर 1920-21 में इसका विरोध किया गया, जिसका नेतृत्व ‘चांदमल सुराणा’ ने किया।
चित्तौड़गढ़ का जाट किसान आन्दोलन
- चित्तौड़गढ़ के राशमी ठिकाने के मातृ कुण्डिया नामक स्थान पर 22 जून, 1880 को एकत्र होकर जाट किसानों ने नई भूराजस्व व्यवस्था के विरुद्ध आन्दोलन किया।
दूधवाखारा किसान आन्दोलन
- बीकानेर रियासत के दूधवाखारा (चूरू के निकट) जागीर उत्तराधिकारी झगड़े के दौरान किसानों पर सभी उत्तराधिकारियों द्वारा अलग-अलग लगान वसूलने के कारण त्रस्त किसाना ने इसका विरोध किया। किसान नेता चौधरी हनुमानसिंह ने जागीरदारों के जुल्मों के विरुद्ध आवाज उठाई। बीकानेर प्रजामण्डल के माध्यम से पं. मंघाराम वैद्य ने इसे राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया।
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