राजस्थान में जनजाति आन्दोलन
राजस्थान में जनजाति आन्दोलन
1. भील आन्दोलन
गोविन्द गुरू एवं भील आन्दोलन
- गोविन्द गिरी का जन्म बांसियां ग्राम (डूंगरपुर) में 1858 ई. में हुआ था। वे दयानन्द सरस्वती की प्रेरणा से जनजातियों की सेवा में लग गये। इनके द्वारा 1883 ई. में गठित ‘सम्प सभा’ के माध्यम से आदिवासियों को संगठित किया गया तथा उनमें व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया गया। रियासतों व जागीरदारों ने इसे राज्य के विरुद्ध संगठित आन्दोलन मानकर कुचलने का प्रयास किया।
- गुरु गोविन्द गिरी द्वारा सम्प सभा का प्रथम अधिवेशन मानगढ़ की पहाड़ी पर आयोजित किया गया।
- 7 दिसम्बर, 1908 आश्विन पूर्णिमा को हर वर्ष की भाँति मानगढ़ की पहाड़ी पर एकत्र भीलों पर सैनिकों द्वारा अंधाधुंध फायरिंग करने से सैकड़ों भील मारे गये।
मोतीलाल तेजावत एवं भील आन्दोलन
- भोमट भील क्षेत्र में मोतीलाल तेजावत ने भीलों को शोषण के विरुद्ध संगठित करने हेतु ‘एकी आन्दोलन’ चलाया जिसे ‘भोमट भील आन्दोलन’ भी कहते हैं।
- तेजावत ने ‘एकी आन्दोलन’ का प्रारम्भ 1921 ई. में किया।
नीमड़ा मातृकुण्डिया हत्याकाण्ड
- 7 मार्च, 1922 ई. को नीमड़ा गाँव में आयोजित सम्मेलन में मेवाड़ भील कोर के सैनिकों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी में सैकड़ों भील मारे गये। इसे ‘दूसरा जलियाँवाला हत्याकाण्ड’ भी कहते हैं।
लसोड़िया आन्दोलन
- संत मावजी ने मेवाड़ व वागड़ क्षेत्र के भीलों में जागृति हेतु यह आन्दोलन चलाया था।
2. मीणा आन्दोलन
- भारत सरकार द्वारा 1924 में पारित ‘क्रिमिनल ट्राइब एक्ट’ में मीणों को जरायम पेशा कौम मानकर 12 वर्ष से बड़े बच्चों व स्त्री-पुरुषों को निकटवर्ती थाने में दैनिक हाजिरी देना अनिवार्य बनाया। इसे ‘जयपुर राज्य जरायम पेशा कानून, 1930’ के द्वारा सख्ती से लागू करने पर मीणाओं द्वारा विरोध किया गया।
- मीणाओं ने संघर्ष करने हेतु ‘मीणा जाति सुधार कमेटी’ (1930) तथा ‘मीणा क्षत्रिय महासभा’ (1933) की स्थापना की। लेकिन कुछ समय पश्चात यह संस्थाएँ विलुप्त प्राय हो गई।
- पल मुनि मगनसागर की अध्यक्षता में नीम का थाना (सीकर)’ में आयोजित ‘मीणाओं के सम्मेलन’ में ‘जयपुर राज्य मीणा सुधार समिति का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष ‘बंशीधर शर्मा को बनाया।
- जयपुर राज्य मीणा सुधार समिति द्वारा चलाये गये व्यापक आन्दोलन के बाद जुलाई, 1946 को स्त्रियों व बच्चों को । पुलिस में हाजिरी देने से छूट दी गई।
- 28 अक्टूबर, 1946 को बागावास सम्मेलन में मीणों ने चौकीदारी के कार्य को स्वेच्छा से त्याग दिया जिसे मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- 1952 में राजस्थान सरकार द्वारा जरायम पेशा कानून रद्द किया गया।
Read Also This