राजस्थान में रियासती दमन चक्र की घटनाएँ
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बीकानेर षड्यंत्र –
- 1931 को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में महाराजा गंगासिंह के इंग्लैण्ड जाने पर चन्दनमल बहड़, सोहनलाल, सत्यनारायण वकील व अन्य साथियों ने ‘बीकानेरप्रशासन एक दिग्दर्शन’ शीर्षक से पुस्तिका प्रकाशित करवाकर गोलमेज सम्मेलन प्रतिनिधियों व ब्रिटिश संसद के सदस्यों को वितरित की जिसमें महाराजा गंगासिंह के कुशासन का सजीव चित्रण था। इस कारण बदनामी होने पर गंगासिंह ने इन लोगों पर मुकदमा चलाकर इन्हें जेल भेज दिया, इसे बीकानेर षड्यंत्र’ के नाम से जाना जाता है।
तसीमो काण्ड
- धौलपुर प्रजामण्डल की सार्वजनिक सभा 11 अप्रैल, 1947 को तसीमो नामक स्थान पर एक नीम के पेड़ के नीचे हुई। उस नीम के पेड़ पर तिरंगा झण्डा फहाराया गया जिसे नीचे उतारने पहुंची धौलपुर पुलिस की गोली से ठाकुर छतरसिंह परमार व ठाकुर पंचमसिंह कच्छवाह शहीद हो गये, लेकिन फिर भी तिरंगा नहीं उतारने दिया। इस स्थान पर प्रतिवर्ष 11 अप्रेल को मेला भरता है।
डाबडा काण्ड
- 13 मार्च, 1947 को मारवाड़ रियासत के डीडवाना परगने के डाबडा गाँव में आयोजित किसान सभा व मारवाड़ लोक परिषद के कार्यकर्ताओं पर जागीरदारों के हमले में अनेक कार्यकर्ता व किसान घायल हो गये, इस हमले में चुन्नीलाल शर्मा व अन्य चार किसान शहीद हो गये।
पुनावड़ा काण्ड
- डूंगरपुर जिले के पुनावड़ा गाँव की पाठशाला को रियासती सिपाहियों ने मई 1947 को ध्वंस कर दिया तथा वहाँ के अध्यापक शिवराम भील को बेरहमी से पीटा।
रास्तापाल काण्ड
- डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गाँव की पाठशाला में रियासती सैनिकों ने पाठशाला संरक्षक नानाभाई खांट की गोली मारकर हत्या कर दी तथा अध्यापक सेंगाभाई को ट्रक से बांधकर घसीटते हुए ले जाने लगे, तब 13 वर्षीय भील बालिका कालीबाई ने रस्सी काटकर अध्यापक को मुक्त कराया इस दौरान उसे गोलियों से छलनी कर दिया जिससे 21 जून, 1947 को उसकी मृत्यु हो गई। दूंगरपुर की प्रसिद्ध गेब सागर झील के निकट काली बाई व नाना भाई खांट की प्रतिमाएँ स्थापित की गई।
सागरमल गोपा पर जुल्म –
- जैसलमेर के शासक महारावल जोरावर सिंह के समय ‘जैसलमेर का गुण्डाराज’ नामक पुस्तक से जैसलमेर के कुशासन की पोल खोलने वाले क्रांतिकारी श्री सागरमल गोपा को राजद्रोह के आरोप में जेल भेज दिया। जेल में उन्हें तरह-तरह की यातनायें दी गईं तथा 3 अप्रेल, 1946 को जेल में केरोसिन छिड़कर आग लगा दी जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना की जांच हेतु 27 अगस्त, 1946 को श्री गोपाल स्वरूप पाठक समिति का गठन किया गया।
डाबी काण्ड
- सामंती जुल्मों के विरुद्ध 23 जून, 1922 को हाड़ौती क्षेत्र के डाबी तालाब पर आयोजित एक सभा में झण्डा गीत गा रहे नानक भील की पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन ने गोली मारकर हत्या कर दी।
नीमूचणा (अलवर) हत्याकाण्ड
- बढ़ी हुई लगान दरों के विरोध में 14 मई, 1925 को अलवर के नीमूचाणा नामक स्थान पर किसानों की सभा पर अंधाधुंध फायरिंग से सैकड़ों किसान मारे गये। गाँधीजी ने इसे दूसरा जलियावाला बाग हत्याकाण्ड’ कहा है।
नीमड़ा हत्याकाण्ड
- 7 मार्च 1922 को नीमड़ा गाँव में आयोजित सम्मेलन में मेवाड़ भील कोर के सैनिकों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी में सैंकड़ों भील मारे गये।
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