विजयनगर कालीन प्रशासन OR न्याय व्यवस्था
विजयनगर कालीन प्रशासन OR न्याय व्यवस्था
विजयनगर कालीन प्रशासन
- विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन केन्द्रोमुखी प्रशासन था।
- विजयनगर राज्य का स्वरूप राजतंत्रात्मक था जिसका प्रमुख राजा स्वयं होता था।
- विजयनगर के राजा ‘राय’ की उपाधि धारण करते थे और स्वयं को ईश्वरतुल्य मानते थे।
इस काल में राजा की सहायता के लिए दो परिषदें होती थी
- राज्य परिषदें-इसका स्वरूप बहुत व्यापक होता था। राजा इसी की सलाह पर नीतियों को बनाता था। इसकी स्थिति औपचारिक अधिक होती थी।
- मंत्रिपरिषद-इसका स्वरूप छोटा होता था जिसमें कुल 20 सदस्य होते थे। इसमें प्रधानमंत्री, उपमंत्री और विभागों के सदस्य होते थे। इसमें विद्वान राजनीति में निपुण 50-70 वर्ष आयु वाले निपुण व्यक्ति को इसका सदस्य बनाया जाता था। इसका अध्यक्ष प्रधानी व महाप्रधानी (प्रधानमंत्री) होता था। राजा व युवराज के बाद इसका स्थान था।
भूराजस्व व्यवस्था
- विजयनगर साम्राज्य में राजकीय आय का मुख्य स्रोत भूराजस्व था जिसे ‘शिष्ट’ कहा जाता था।
- भूराजस्व भूमि की उपज के आधार पर निर्धारित किया जाता था जो सामान्यतः 1/3-1/4 के बीच था। , 16वीं शताब्दी के मध्य में सदाशिवराय के काल में नाइयों को व्यवसायिक कर से मुक्त कर दिया गया था।
न्याय व्यवस्था
विजयनगर के शासकों ने चार प्रकार के न्यायालयों का गठन किया था
- प्रतिष्ठितान्यायालय-यह न्यायालय ग्राम एवं नगर में स्थापित होते थे जो प्राचीन सभा के रूप में थे।
- चल न्यायालय-यह न्यायालय समय-समय पर अलग अलग स्थानों पर कुछ समय के लिए स्थापित किए जाते थे।
- मुद्रिता न्यायालय-यह केन्द्रीय न्यायालय था जो विभिन्न नगरों में स्थापित किए जाते थे जिसमें उच्च न्यायाधीश नियुक्त किए जाते थे।
- शास्त्रिता न्यायालय-यह राजा का न्यायालय होता था। जो राज्य का सर्वोच्च न्यायालय होता था।
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