विजयनगर साम्राज्य ( 13 36-1678 ई.)
विजयनगर साम्राज्य ( 13 36-1678 ई.)
- मध्यकाल में स्थापित होने वाला प्रथम हिन्दू राज्य विजयनगर साम्राज्य था।
- इसकी स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 ई. में माधव विद्यारण्य नामक विद्वान ब्राह्मण की प्रेरणा से किया था।
- हरिहर एवं बुक्का द्वारा प्रारम्भ में स्थापित हम्पी (हस्तिनावति) नामक राज्य ही कालांतर में विजयनगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
विजयनगर साम्राज्य 342 वर्षों तक रहा इस बीच में कुल चार राजवंशों ने शासन किया–
- संगम वंश
- सालुव वंश
- तुलुव वंश
- अरबिंदु वंश
1. संगम वंश ( 1336-1486 ई.)
- संगम वंश की स्थापना हरिहर बुक्का ने की।
हरिहर प्रथम
- संगम वंश का प्रथम शासक हरिहर प्रथम था। इसने
- आनेगोन्दी को अपनी राजधानी बनाई।
- हरिहर प्रथम ने अपने शासन के 17 वर्ष बाद विजयनगर को अपनी राजधानी बनाई। फिर इसी नगर के नाम पर विजयनगर साम्राज्य का नाम पड़ा।
बुक्का प्रथम
- हरिहर प्रथम के बाद बुक्का प्रथम शासक बना। इसने मदुरा को जीतकर अपने राज्य में मिलाया।
- इसने वैदिक धर्म को प्रोत्साहन दिया। इस उपलक्ष्य में ‘वेदमार्ग प्रतिष्ठापक’ की उपाधि धारण की। हरिहर द्वितीय
- हरिहर द्वितीय, बुक्का प्रथम का पुत्र था। यह विजयनगर का प्रथम शासक था जिसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की।
देवदाय प्रथम
- इसके समय में इटली का एक यात्री निकोलीकोंटी ने विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की।
देवराय द्वितीय
- देवराय द्वितीय इस वंश का सबसे महान शासक था, जो जनसाधारण में ‘इंद्र का अवतार’ माना जाता था।
- इसके समय में फारस के शासक शाहरूख ने अब्दुल रज्जाक को अपना दूत बनाकर 1442 ई. में इसके दरबार में भेजा था।
- देवराय द्वितीय ने बड़ी संख्या में अपनी सेना में मुसलमानों को भर्ती किया और उनके उपयोग के लिए एक मस्जिद का निर्माण कराया।
विरुपाक्षराय
- यह संगम वंश का अन्तिम शासक था।
2. सालुव वंश (1486 – 1505 ई.)
सालुव वंश का संस्थापक सालुव नरसिंह था।
इम्माडि नरसिंह
- सालुव नरसिंह के दो पुत्र थे। तिम्मा व इम्माडि नरसिंह।
- तिम्मा की हत्या के पश्चात् इम्मडि नरसिंह को गद्दी पर बैठाया गया।
- इम्माडि नरसिंह के वयस्क होने पर उसका अपने संरक्षक नरसा नायक से विवाद हो गया।
3. तुलुव वंश (1505-1565 ई.)
वीर नरसिंह
- तुलुव वंश की स्थापना वीर नरसिंह ने की। इसने केवल चार वर्ष तक शासन किया।
- इम्माडि नरसिंह की हत्या कर सिंहासन पर अधिकार करने के कारण उसके विरुद्ध असंतोष फैला गया।
कृष्णदेव राय
- कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान शासक था। इसका शासन काल सफलताओं का युग था। इसने बीजापुर राज्य से
- रायचुर का द्वाबा जीत लिया। इसी तरह इसने उड़ीसा के शासक प्रताप रुद्रदेव गजपति को चार बार पराजित कर आंध्र के तटवर्ती क्षेत्रों को जीत लिया और अन्ततः दोनों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित हुआ।
- इसी तरह कृष्णदेवराय ने बीदर पर आक्रमण किया और यहां के शासक महमूदशाह को उसके वजीर बरीदशाह के चंगुल से मुक्त
- कराकर पुनः गद्दी पर बैठाया। इस उपलक्ष्य में कृष्णदेवराय ने ‘यवनराजस्थापनाचार्य’ की उपाधि धारण की।
- कृष्णदेवराय के दरबार में तेलगू के आठ प्रसिद्ध विद्वान रहते थे जिन्हें ‘अष्टदिग्गज’ कहा जाता है।
- कृष्णदेवराय स्वयं विद्वान था। इसे आंध्रभोज/दक्षिण का भोज कहा जाता है।
- कृष्णदेवराय के बाद इसका भतीजा अच्युतराय शासक बना।
सदाशिवराय
- अच्युतराय के बाद कृष्णदेवराय का पुत्र सदाशिवराय शासक बना।
- सदाशिवराय का प्रधानमंत्री रामराय था जो प्रतिशासक के रूप में सारी शक्तियां अपने हाथों में ले लिया। अली आदिलशाह ने रामराय से कुछ किलों की मांग की और रामराय ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप 23 जनवरी, 1565 ई. में तालीकोटा का युद्ध हुआ। इस युद्ध को बनहट्टी/राक्षसी तंगड़ी का युद्ध/कृष्णा नदी का युद्ध के नाम से जाना जाता है।
4. आरबिदु वंश (1570-1678 ई.)
- आरबिंदु वंश का संस्थापक तिरुमल था। तिरुमल का पौत्र वेंकट द्वितीय इस वंश का सबसे महान शासक था। वेंकट द्वितीय के शासन काल के समय राजा बोडियार ने मैसूर राज्य की स्थापना की।
- वेंकट द्वितीय ने चंद्रगिरि को अपनी राजधानी बनाई। इसके समय में विदेशों के अनेक राजनयिक मण्डल यहां आए।
- वेंकट द्वितीय को चित्रकला में अत्यधिक रुचि थी। इसे ईसाई धर्म से सम्बंधित चित्र पसंद थे।
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