सूरवंश (1540-55 ई.) शेरशाह सूरी ( 1540-45 ई.)
सूरवंश (1540-55 ई.)
शेरशाह सूरी ( 1540-45 ई.)
- शेरशाह सूरी भारत में द्वितीय अफगान वंश का संस्थापक था। शेरशाह ने जो कार्य किये उसके आधार पर न केवल साम्राज्य निर्माता बल्कि इसे अकबर का अग्रगामी कहा जाता है।
- इसके बचपन का नाम फरीद था।
- इसका जन्म 1472 में बजबारा या नरनौल में हुआ तथा इसके पिता का नाम हसन था।
- 1494 में सिकन्दर लोदी ने जमाल खाँ को जौनपुर के फौजदार पद पर नियुक्त किया।
- 1494 में फरीद पिता से नाराज होकर जौनपुर आया और यहां पर इसने शिक्षा प्राप्त की।
- 1520 में हसन की मृत्यु के बाद यह अपनी पिता की गद्दी का मालिक हो गया।
- बहार खाँ (महमूदशाह) के साथ एक शिकार यात्रा में इसने एक शेर का वध कर दिया जिससे इसने शेरखां की उपाधि धारण की।
- लोहानी सरदारों के षडयंत्र के कारण इसे बिहार छोड़ना पड़ा और ये बाबर की सेना में शामिल हो गया और चन्देरी के युद्ध में इसने बाबर की तरफ से युद्ध किया।
- 1539 में इसने चौसा के युद्ध में हुमायूँ को पराजित कर शेरशाह की उपाधि धारण की।
- 1540 में इसने कन्नौज के युद्ध में हमायूँ को पराजित कर भारत का सुल्तान बना।
- शेरशाह सुल्तान बनने से पहले 1529 ई. में बंगाल के शासक नुसरतशाह को पराजित कर ‘हजरते-आला’ की उपाधि धारण की।
- 1540 ई. में कन्नौज के युद्ध में हुमायूं को पराजित कर ‘सुल्तान’ की उपाधि धारण की।
शेरशाह सूरी के प्रमुख अभियान
बंगाल विद्रोह का दमन (1541)
- बंगाल के गवर्नर खिज्रखाँ ने 1541 में विद्रोह कर दिया।
- इसने अब बंगाल को 19 सरकारों में बांट दिया और प्रत्येक सरकार में एक शिकदार-ए-शिकदारान की नियुक्ति की जो सुल्तान के सीधे नियंत्रण में थे।
मालवा विजय (1542)
- इस समय यहां मल्लू खां (कादिरशाह) शासक था। इसने अपनी राजधानी उज्जयिनी में शेरशाह का स्वागत किया और मालवा राज्य शेरशाह को सौंप दिया।
रायसीन विजय (1543)
- यहां का राजा पूरनमल चौहान था।
- शेरशाह ने रायसीन के दर्ग को चालाकी एवं धोखे से विजित किया, जो इसके जीवन में कलंक था।
मारवाड़ विजय
- यहां का शासक मालदेव था।
- यह राजपूतों के शौर्य से इतना प्रभावित हुआ कि इसने कहा-मुठ्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान को प्रायः खो चुका था।
कालिंजर अभियान (1544)
- यहां का शासक कीर्ति सिंह था।
- कालिंजर का घेरा लगभग 7 महीने तक पड़ा रहा।
- जब किले को विजित नहीं कर सका तब शेरशाह ने मई 1545 में किले की दीवार को गोला बारूद से उड़ा देने की आज्ञा दी।
- युद्ध सामग्री में आग लगने से शेरशाह गम्भीर रूप से घायल हो गया और इसकी मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले इसे किले को जीतने का समाचार प्राप्त हो गया था।
भू-राजस्व व्यवस्था
- सर्वप्रथम शेरशाह ने गज-ए-सिकन्दरी के माध्यम से भूमि की नाप कराई और कृषि योग्य भूमि को तीन श्रेणियों (1) उत्तम, (2) मध्यम, (3) निम्न श्रेणी तीनों का औसत उपज निकालकर 1/3 भाग भू-राजस्व निर्धारित किया। इस व्यवस्था को जाब्ती प्रणाली के नाम से जाना जाता है।
भू-राजस्व के अतिरिक्त किसानों से दो अन्य कर वसूल कियेः
- जरीबाना:-यह भूमि की नाम के लिए लिया जाने वाला कर था जो उपज का ढाई प्रतिशत था।
- महासीलाना :- यह कर वसूली के लिये लिया जाता था जो उपज का 5 प्रतिशत था। इसने किसानों को भूमि का स्वामी बनाया और किसानों को पट्टा दिया और किसानों से इसने कबूलियत (स्वीकृत पत्र) प्राप्त किया।
- इसने अनेक सड़कों का निर्माण कराया जिसमें सबसे प्रमुख थी बंगाल के सोनारगांव से लेकर पंजाब में अटक तक। इसे सड़क-ए-आजम के नाम से जाना जाता था।
- शेरशाह ने पुराने सिक्कों को बंद करके सोने-चाँदी-तांबे के नए सिक्के चलाये। इसने सर्वप्रथम चाँदी का रुपया चलाया और तांबे का दाम चलाया।
- रुपये और दाम में 1:64 का अनुपात था।
- शेरशाह ने पटना नगर की स्थापना की थी।
- इसने सहसराम में अपने लिए मकबरे का निर्माण कराया जो एक कृत्रिम झील के मध्य में स्थित है।
शेरशाह द्वारा लिया जाने वाला कर–
- खिराज-(भूमि कर) औसत उपज का 1/3 भाग
- जरीबाना-भूमि की नाप के लिए उपज का 2-1 %
- महासीलाना-राजस्व अधिकारियों के लिए उपज का 5%
शेरशाह द्वारा बनवाई गई सड़कें
- सड़क-ए-आजम-यह सड़क बंगाल के सोनार गांव से लेकर पंजाब में अटक तक जाती थी। लगभग 1500 मील लम्बी थी।
- आगरा से बुरहानपुर तक जाती थी।
3. आगरा से चित्तौड़ तक जाती थी।
4. लाहौर से मुल्तान तक जाती थी।
शेरशाह द्वारा चलाये गये सिक्के –
- शेरशाह ने अपने सिक्कों पर फारसी भाषा के साथ साथ देवनागरी में भी लेख लिखवाये।
- रुपया-यह चाँदी का सिक्का था। रुपया का प्रचलन सर्वप्रथम शेरशाह ने किया था।
- अशरफ-यह सोने का सिक्का था।
- दाम-यह ताँबे का सिक्का था।
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