तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
taapamaan ke vitaran ko prabhaavit karane vaale kaarak
(1) भूमध्य रेखा से दूरीः
- सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर लगभग पूरे वर्ष लम्बवत् पड़ती है जिस कारण वहाँ पर सूर्यातप अधिक प्राप्त होता है। इसके विपरीत भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर सूर्य की किरणें तिरछी हो जाती है। अतः वहां पर सूर्यातप कम प्राप्त होता है। ध्रुवों पर तापमान हिमांक से भी कम हो जाता है और वहाँ पर बर्फ जमी रहती है ।
(2) समुद्र तल से ऊँचाई:
- ऊँचाई की ओर जाने पर तापमान घटता जाता है । सामान्यतः 165 मीटर की ऊँचाई पर 1°C अथवा 1 किमी की ऊँचाई पर 6.5 °C तापमान गिर जाता है। दिल्ली की अपेक्षा शिमला का तापमान कम है क्योंकि शिमला, दिल्ली की अपेक्षा अधिक ऊँचाई पर स्थित है। अतः पर्वतीय प्रदेश मैदानों की अपेक्षा अधिक ठण्डे होते हैं ।
(3) समुद्र तट से दूरी:
- स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है और देर से ही ठण्डा होता है । अतः जो स्थान सागर के निकट है वहां पर तापमान लगभग एक समान रहता है। इसके विपरीत समुद्र से दूर स्थित स्थानों के ताप में अधिक असमानता पायी जाती है।
(4) समुद्री धाराएँ :
- समुद्री धाराएँ तटवर्ती क्षेत्रों के तापमान को काफी प्रभावित करती है। जिन क्षेत्रों में गर्मधारा बहती है वहाँ का तापमान अधिक एवं जिन क्षेत्रों में ठंडी धारा बहती है वहाँ का तापमान कम हो जाता है । ‘गल्फ स्ट्रीम’ की गर्म धारा यूरोप के तटीय भागों का तापमान ऊँचा बनाये रखती है। इस प्रकार समुद्री धाराएँ अपने स्वभाव के अनुसार तटीय भागों के तापमानों को नियंत्रित करती हैं ।
(5) प्रचलित पवनें:
- जिन स्थानों पर गर्म पवनें आती है वहाँ का तापमान अधिक एवं जहाँ पर ठण्डी पवनें आती है वहाँ का तापमान कम रहता है। इटली में सहारा मरूस्थल से आने वाली ‘सिरोको’ पवन तथा उत्तरी अमेरिका के मैदानों में ‘चिनुक’ नामक गर्म पवन वहाँ के तापमान में वृद्धि करती है । इसी तरह उत्तरी भारत के मैदानी भाग में गर्मियों में चलने वाली ‘लू’ से तापमान कई बार 45°C तक पहुँच जाता है ।
(6) भूमि का ढालः
- धरातल के जो ढाल सूर्य के सामने आते हैं वे सूर्यातप अधिक प्राप्त करते हैं, वहाँ पर तापमान भी अधिक होता है। इसके विपरीत जो ढाल सूर्य से विपरित दिशा में होते है, वहाँ पर सूर्यताप कम प्राप्त होता है, वहाँ पर तापमान भी कम होता है । हिमालय तथा आल्पस पर्वतो के दक्षिणी ढलानों पर तापमान अधिक तथा उत्तरी ढ़लानों पर तापमान कम पाया जाता है ।
( 7 ) धरातल की प्रकृतिः
- हिम तथा वनस्पतियों से आच्छादित धरातलीय भाग सूर्य से प्राप्त हुए अधिकांश ताप को परावर्तित कर देते हैं। अतः इन प्रदेशों में तापमान अधिक नहीं हो पाता । इसके विपरीत बालू तथा काली मिट्टी से ढँके हुए प्रदेश अधिकांश सूर्यातप का अवशोषण कर लेते हैं जिस कारण वहाँ पर तापमान अधिक होता है । धरातल द्वारा प्राप्त सूर्य ताप को परावर्तित करने की प्रक्रिया को ‘एल्बिडो या शिवार्त’ (Albedo) कहा जाता है ।
( 8 ) मेघ तथा वर्षाः
- धरातल पर स्थित वे क्षेत्र जहाँ पर मेघ छाए रहते हैं तथा वर्षा भी अधिक होती है वहाँ का तापमान अधिक नहीं हो पाता, क्योंकि मेघ सूर्य की किरणों का परावर्तन कर देते हैं। जैसे, भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणों के लम्बवत् पड़ने के बावजूद भी वहाँ पर उतना अधिक तापमान नहीं हो पाता जितना की मेघरहित उष्ण मरूस्थलीय भागों में हो जाता है।
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तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक FAQ –
Q. सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली और विकिरण ऊर्जा को क्या कहते है?
Ans. सूर्यातप
Q. यह ऊर्जा सूर्य से पृथ्वी पर किस रूप में पहुँचती है?
Ans. लघु तरंगों के रूप में
Q. वायुमंडल की बाहरी सीमा पर सूर्य से प्रति मिनट प्रति वर्ग सेमी कितनी कलौरी ऊष्मा प्राप्त होती है?
Ans. 1.94 कैलोरी
Q. किस भी सतह को प्राप्त होने वाली सूर्यातप की मात्रा एवं उसी सतह से परावर्तित की जाने वाली सूर्यातप की मात्रा के बीच का अनुपात क्या कहलाता है?
Ans. एल्बिडो
Q. वायुमंडल किन विधियों के कारण गर्म तथा ठंडा होता है?
Ans. विकिरण (Radiation), संचालन (Conduction), सहवन (Convection), अभिहवन (Advection)
Q. किसी पदार्थ को ऊष्मा तरंगों के संचार द्वारा सीधे गर्म होने को क्या कहते है?
Ans. विकिरण
Q. वह प्रिक्रिया कौन-सी है जिससे ऊष्मा बिना किसी माध्यम के शून्य से होकर भी यात्रा कर सकती है?
Ans. विकिरण