अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management)
apshisht prabandhan in hindi
- अपशिष्ट आज भारत में ही नहीं बल्कि वैश्विक समस्या है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूड़ा प्रबंधन के प्रति असावधानी को आज गंभीरता से लिया गया है और इससे वातावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के प्रति चिंता प्रकट की गई है। भारत में कुल 5161 नगर है जिनमें 35 को महानगर का दर्जा प्राप्त है। 393 प्रथम श्रेणी और 401 द्वितीय श्रेणी के नगर के अतिरिक्त 20000 से 50000 की आबादी वाले छोटे नगर भी है। भारत में इन नगरों से प्रतिदिन लगभग एक लाख टन अपशिष्ट पदार्थ निकलते है। छोटे नगरों से निकलनें वाले कूड़े को प्रति व्यक्ति औसत मात्रा 0.1 किग्रा. है जबकि बड़े नगरों में 04 से 0.6 किग्रा. औसत कूड़ा निकलता है | भारत में नगरों के सौन्दर्य को बिगाड़ने में यह कूड़ा अहम भूमिका निभाता है। नगर सभ्यता की ओर आकर्षित होते मध्यवर्गीय ग्प्रमीणों की बढत से नगरों की आबादी मे वृद्धि होती है तो यह नए नगर कूड़े के प्रबंधन के प्रति स्वभाविक रुप से लापरवाह भी होते हैं | छोटे नगरों में कोष की कमी या अनुपयुक्तता के कारण प्रबंधन होने में कठिनाई होती है | ठेकेदारों का अभाव होता है। उनके समय पर भुगतान के प्रति सचेष्ट नहीं होने के कारण भी यह समस्या उत्पन्न होती है। स्थानीय लोगों को अपने-अपने क्षेत्रों से निस्तारित कूड़े को अलग कर कूड़े से जैविक खाद, वर्मीकम्पोष्ट बनाने का रास्ता और आवश्यक प्रबंधन विकसित करना अधिक आसान है।
- ‘रासायानिक खादों के बढते दुष्प्रभाव, अनुपलब्धता एवं मंहगाई के विकल्प स्वरुप जैविक खाद पर अवलबिंत होना अधिक प्राकृतिक और उपयुक्त होगा | कूड़े का प्रबंधन व्यक्तिगत सावधानी से संभव है | यह न सिर्फ सामाजिक कर्तव्य है बल्कि जीवन और पर्यावरण के अन्योन्याश्रय संबध का निर्धारक जैविक कर्तव्य भी है।
- अपशिष्ट प्रबंधन परिवहन, संसाधन पुनर्व्चक्रण, या अपशिष्ट के काम में प्रयोग की जाने वाली सामग्री का संग्रह है। अपशिष्ट प्रबंधन में शामील होते हैं ठोस, तरल, गैस या रेडियोधर्मी पदार्थ | प्रत्येक पदार्थ के साथ अलग-अलग तरीकों और विशेषज्ञता का प्रयोग किया जाता है। अपशिष्ट प्रबंधन का तरीका विकसित और विकासशील देशों में, गांव और शहरों में आवासीय और औद्योगिक निर्माताओं के लिए अलग-अलग होता है।
- अपशिष्ट पदार्थों के एकत्रीकरण एवं विस्तार की समस्या एक गम्भीर समस्या है। आज यह बड़े नगरों में है, कल छोटे नगरों में होगी | यही नहीं अपितु नगरीय विकास के साथ-साथ यह और विकट होती जाएगी | विकास एक नैसर्गिक प्रक्रिया है जिसे रोका नहीं जा सकता | आवश्यकता है उसे एक उचित दिशा देने की जिससे “अपशिष्ट रहित विकास” की कल्पना को मूर्तरुप दिया जा सके | यह कार्य उचित प्रबन्धन द्वारा सम्भव है जिसे सरकारी तंत्र, सव्यंसेवी संस्थाओं और नागरिकों के सहयोग से किया जा सकता है।
- भारत सरकार ने 1975 में शिवरामन समिति का गठन इस कार्य हेतु किया था जिसके सुझाव थे- बड़े-बड़े कूड़ेदानों की स्थापना, मानव द्वारा अपशिष्ट मल-मूत्र निष्कासन की उचित व्यवस्था, नगरों में कूड़ा-करकट उठाने की समूचित व्यवस्था, कूड़े के ढेरो को जला कर भस्म करना आदि। अपशिष्ट पदार्थों के नियन्त्रण तथा प्रबन्धन हेतु निम्न तरीके काम में लिए जाते हैं-
अपशिष्ट प्रबंधन के तरीके (Methods of waste management)
- अपशिष्ट प्रबंधन अलग-अलग क्षेत्रों में अपशिष्ट सामग्री के प्रकार, आस-पास की भूमि के उपयोग और उपलब्ध क्षेत्र समेत कई कारणों के कारण भिन्न होते हैं |
(1) भूमिभराव (Land fill)
- इस प्रक्रिया में अपशिष्ट का प्रबन्धन इस प्रकार करते है-
- भूमिभराव अक्सर गैर उपयोग की खानों, खनन रिक्तियों इत्यादि क्षेत्रों में बनाये जाते है । यह अपशिष्ट निपटान का एक बहुत ही साफ और अपेक्षाकृत कम खर्च वाला तरीका है तथा अधिकतर देशों में यह आम चलन है। लेकिन पुराने और गलत तरीके से भूमिभराव करने से पर्यावरण पर उल्टे प्रभाव हो सकते हैं जैसे हवा से कचरे के उड़ने, कीटों को आकर्षित करना, तरल का उत्पादन आदि इसके अलावा कार्बनिक अपशिष्ट के अपघटन से मेथेन गैस बनती है, जो बदबू पैदा कर सकती है, यह वनस्पति को नष्ट कर सकती हैं और एक ग्रीन हाऊस गैस भी है | आधुनिक भूमिभराव में नियोजित तरीकों से अपशिष्ट का निष्पादन किया जाता है। गड्ढों को मिट्टी से भर देते है और भूमिभराव गैस निकासी के लिए भूमिभराव गैस प्रणाली स्थापित की जा सकती है। इस गैस को एकत्रित कर विद्युत उत्पादन किया जा सकता है।
(2) भस्मीकरण (Incineration)
- निष्पादन की इस विधि में अपशिष्ट पदार्थ का दहन किया जाता है। जिससे अपशिष्ट ताप, गैस, भाप और राख में परिवर्तित हो जाते हैं ।
- भस्मीकरण दोनों ही पैमाने पर किया जाता है। छोटे पैमाने पर व्यक्तियों द्वारा और उद्योगों द्वारा एक बड़े पैमानें पर इसका प्रयोग तरल, ठोस और गैसीय अपशिष्ट के निष्पादन के लिए किया जाता है। इसे खतरनाक कचरा जैसे जैविक चिकित्सा अपशिष्ट निष्पादन के लिए एक व्यवहारिक पद्धति के रुप में मान्यता प्राप्त है परन्तुं गैसीय प्रदूषकों के उत्सर्जन के कारण भस्मीकरण अपशिष्ट निष्पादन एक विवादास्पद पद्धति है। भस्मीकरण जापान जैसे देशों में ज्यादा प्रचलित है क्योंकि इसमें कम भूमि की जरुरत पड़ती है। और इस हेतु भूमिभराव के जितने बड़े क्षेत्रों की आवश्यकता नहीं होती है।
(3) पुनर्चकरण तरीके (Recycling methods)
- अपशिष्ट से संसाधनों को या किसी भी मूल्य की चीज को निकालना पुनर्चकण के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ होता है पुनः मिलना, जिससे अपशिष्ट पदार्थ का पुनर्नवीकरण होता है। कच्चा माल निकाला जा सकता है और पुनः प्रक्रम किया जाता है या अपशिष्ट की कैलोरी सामग्री बिजली में परिवर्तित की जा सकती है। ज्यादातर विकसित देशों में पुनर्चकण का लोकप्रिय अर्थ व्यापक संग्रह और रोजाना अपशिष्ट पदार्थों का पुन: प्रयोग करने को सन्दर्भित है।
- पुनर्नवीनीकरण के लिए सबसे आम उपभोक्ता उत्पादों में एल्युमूनियम पेय के डिब्बे, इस्पात, भोजन और एयरोसोल के डिब्बे, प्लास्टिक व कांच की बोतले, गत्ते के डिब्बे, पत्रिकाएं, प्लास्टिक के सामान आदि हैं। प्राकृतिक जैविक अपशिष्ट पदार्थ जैसे पौधे की सामग्री, बचा हुआ भोजन, कागज, ऊन आदि का प्रयोग कम्पोस्ट खाद, वर्मीकम्पोस्ट, जैविक खाद बनाने में किया जा सकता है साथ ही इस प्रक्रिया से गैस उत्पादन कर विद्युत बनायी जा सकती है।
(4) रासायनिक क्रिया (Chemical reaction)
- रासायनिक क्रिया द्वारा भी अनेक अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट किया जा सकता है अथवा उन्हे पुनः उपयोगी बनाया जा सकता है।
apshisht prabandhan in hindi
इनके अतिरिक्त अपशिष्ट निस्तारण के अन्य उपाय इस प्रकार है-
- गहरे महासागरों में अपशिष्ट का निस्तारण किया जा सकता है किन्तु इसमें यह ध्यान देना आवश्यक है कि सागरीय पर्यावरण प्रदूषित न हो |
- हडिड्यों, वसा, पंख, रक्त आदि पशु अवशेषों को पका कर चर्बी प्राप्त की जा सकती है जिनका प्रयोग साबुन बनाने में किया जाता है तथा इसके प्रोटीन अंश वाला भाग पशु रुप में उपयोगी होता है।
- कूड़े- करकट को अत्यधिक दाब से ठोस ईटों में बदला जा सकता है।
- नगरीय जल-मल को नगर से दूर गढ़ों में डाला जाए तथा वहां से शुद्धिकरण के पश्चात ही इसका सिंचाई आदि में उपयोग किया जाना चाहिए।
- सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण एंव उनके उपयोगों कें संबंध मे निरन्तर शोध की आवश्यकता है |
- यही नहीं अपितु विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वे सभी तकनीके प्रदान करनी चाहिए जो अपशिष्ट के निस्तारण एवं पर्यावरण सुरक्षा में सहायक हो |
- अपशिष्ट पदार्थों की बढती समस्या एवं पर्यावरण सुरक्षा हेतु प्रत्येक क्षेत्र, यहां तक की प्रत्येक नगर हेतु एक दीर्घकालीन “मास्टर प्लान” बनाया जाना आवश्यक है जिससे सस नियोजित रुप से इसका निराकरण हो सके !
- सर्वाधिक आवश्यक है – सामान्य नागरिकों के व्यवहार में सुधार | यदि हम में से प्रत्येक अपने घर के अपशिष्ट पदार्थों को स्वंय या दूसरों के घरों अथवा नालियों में फेंकना बन्द कर उसकों उचित स्थान पर एकत्र करें तो यह समस्या स्वतः कम हो जाएगी | इसी प्रकार नगरपालिकाओं को भी अपनी उदासीनता त्यागनी होगी और सफाई कर्मचारियों के कार्यों में कुशलता एवं कृत्तव्य परायणता लानी होगी | अपशिष्ट पदार्थों से पर्यावरण प्रदूषित न हो और हमारे स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न हो इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है क्योकि पर्यावरण एक सांझी विरासत है जिसे हमें सुरक्षित रखना है|
अपशिष्ट एवं इसका प्रबंधन FAQ –
प्रश्न 1. जैव चिकित्सकीय अपशिष्ट के निस्तारण हेतु कौनसी तकनीक उपयुक्त है–
(क) भूमि भराव
(ख) भस्मीकरण
(ग) पुनर्चक्रण
(घ) जल में निस्तारण
Click to show/hide
प्रश्न 2. पुनर्चक्रण किस प्रकार के अपशिष्ट हेतु उत्तम उपचार है
(क) धात्विक अपशिष्ट
(ख) चिकित्सकीय अपशिष्ट
(ग) कृषि अपशिष्ट
(घ) घरेलू अपशिष्ट
Click to show/hide
प्रश्न 3. निम्न में से प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है
(क) हाइड्रोजन
(ख) कार्बन मोनो ऑक्साइड
(ग) कार्बन डाई ऑक्साइड
(घ) सल्फर डाई ऑक्साइड
Click to show/hide
प्रश्न 4. भारत के बड़े नगरों में प्रति व्यक्ति औसत कूड़ा निकलता है
(क) 1-2 किग्रा
(ख) 1 से 2 किग्रा.
(ग) 2-4 किग्रा.
(घ) 4 से 6 किग्रा.
Click to show/hide
प्रश्न 5. जैविक खाद बनाई जा सकती है
(क) घरेलू कचरे से
(ख) कृषि अपशिष्ट से
(ग) दोनों से
(घ) कोई नहीं
उत्तर ⇒ ???????
प्रश्न 1. बायोगैस कैसे बनाई जाती है?
उत्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू उपयोग के लिए अपशिष्टों, जीव-जन्तुओं के उत्सर्जी पदार्थों, जैसे-गोबर और मानव मलमूत्र के उपयोग से बायोगैस बनाई जाती है।
प्रश्न 2. अपशिष्ट क्या है?
उत्तर- किसी भी प्रक्रम के अन्त में बनने वाले अनुपयोगी पदार्थ या उत्पाद अपशिष्ट कहलाते हैं।
प्रश्न 3. ग्रीन हाउस गैसों के नाम लिखें।
उत्तर- कार्बन डाईऑक्साइड, जलवाष्प, मैथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन आदि ग्रीन हाउस गैसें हैं।
प्रश्न 4. वर्मी कम्पोस्ट किसे कहते हैं ?
उत्तर- कृषि सम्बन्धी कूड़ा-कचरा, सब्जियों के शेष भाग, पशु मल-मूत्र, गोबर आदि का ढेर कर उन पर केंचुए छोड़ दिये जाते हैं। ये केंचुए इन पदार्थों को खाने के बाद जो मल त्यागते हैं यही जैविक खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहलाती है।
Note :- आशा है की आपको यह Post पसंद आयी होगी , सभी परीक्षाओं ( Exam ) से जुड़ी हर जानकरियों हेतु ExamSector को बुकमार्क जरूर करें।