वाणिज्यिक प्रक्रिया मॉडल (Mercantile Process Model in Hindi ) | ExamSector
वाणिज्यिक प्रक्रिया मॉडल (Mercantile Process Model in Hindi )

वाणिज्यिक प्रक्रिया मॉडल (Mercantile Process Model in Hindi )

Process Model in Hindi

  • वाणिज्यिक प्रक्रिया से आशय उपभोक्ता एवं वाणिज्य में परस्पर ऑन लाइन कामर्स संबंधी आदान- प्रदान से है। वस्तुओं के क्रय विक्रय के लिये वाणिज्यिक प्रक्रिया मॉडल की आवश्यकता होती है। यह ग्राहक की सुविधा के लिए है क्योंकि एक साधारण ग्राहक नयी व्यवसाय प्रक्रिया को आसानी से समझ नहीं सकता है।

उपभोक्ता की दृष्टि से वाणिज्यिक मॉडल (Mercantile Models for Consumers perspective):

  • ऑन लाइन उपभोक्ता की यह अपेक्षा होती है कि उच्च किस्म की, उचित मूल्य की वस्तु सुविधाजनक तरीके से उसे प्राप्त हो जाए। इन अपेक्षाओं की पूर्ति के लिये वाणिज्यिक प्रक्रिया मॉडल की आवश्यकता होती है ।

उपभोक्ता की दृष्टि से वाणिज्यिक मॉडल में प्रमुख तत्व निम्नानुसार होते हैं-

I. क्रय से पूर्व की स्थिति
II. क्रय उपभोग की स्थिति
III. क्रय के पश्चात् की स्थिति

उपरोक्त स्थितियों को निम्नांकित चित्र की सहायता से समझा जा सकता है।

Process Model in Hindi
वाणिज्यिक मॉडल व्यापारी की दृष्टि से (Mercantile Models from Merchant’s Perspective):

आधुनिक युग में ग्राहक को सेवा प्रदान करने के लिए व्यापारी को दी जाने वाली सुविधाओं का एक सेट तैयार करता है और उसी आधार पर न्यूनतम लागत पर ग्राहक को सभी सेवाएँ / सुविधाएँ दी जाती हैं ।

व्यापारी की दृष्टि से वाणिज्यिक मॉडल के प्रमुख तत्व इस प्रकार हैं-

I. विक्रय से पूर्व की स्थिति
II. विक्रय / सुपुर्दगी के समय की स्थिति
III. विक्रय के पश्चात् की स्थिति

उपरोक्त स्थितियों को निम्नांकित चित्र की सहायता से समझा जा सकता है-

I. विक्रय से पूर्व की स्थिति :

विक्रय से पूर्व की स्थिति में विक्रय से पूर्व की सभी गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं। वास्तविक विक्रय से पूर्व के विचार विमर्श को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं ।

  1. विक्रय – आदेश की योजना – वास्तविक से बहुत पहले विक्रय की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है । विक्रय के लिए आदेश प्राप्त होने से पूर्व विक्रय की योजना बनाई जाती है, विभिन्न माध्यमों से विज्ञापन किया जाता है, ग्राहकों को वस्तु की जानकारी विभिन्न माध्यमों से उपलब्ध करायी जाती है ।
  2. लागत एवं मूल्य निर्धारण – कंपनी की क्षमता एवं ग्राहक की आवश्यकता में वस्तु का मूल्य एक पुल का कार्य करता है। वस्तु का मूल्य इस बात पर भी निर्भर करता है कि ग्राहक के लिये उस वस्तु की कीमत कितनी है। यह कीमत अलग-अलग ग्राहक के लिये अलग-अलग हो सकती है। व्यापारी को एक प्रणाली विकसित करनी होती है जिससे वह वस्तु के मूल्य एवं उसकी कीमत में सामंजस्य रख सके।

II. विक्रय / सुपुर्दगी के समय की स्थिति

वास्तविक विक्रय से संबंधी गतिविधियाँ निम्नानुसार हैं-

  1. सर्वप्रथम ग्राहक से क्रय आदेश प्राप्त किया जाता है तथा तदनुसार उसकी प्रविष्टि की जाती है।
  2. ग्राहक से प्राप्त विभिन्न आदेशों में से चयन किया जाता है, जिसे स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है। इसके पश्चात् स्वीकृत आदेशों का क्रम निर्धारित किया जाता है । पहले सुपुर्दगी किसे भेजनी है और बाद में सुपुर्दगी किसे देनी है, यह निश्चित किया जाता है ।
  3. स्वीकृत आदेशों की पूर्ति के लिये सुपुर्दगी भिजवायी जाती है ।
  4. बिल बनाने और भुगतान प्राप्ति का कार्य सबसे अंत में किया जाता है। इसी समय यह निश्चित किया जाता है कि भुगतान का माध्यम क्या होगा ।

III. विक्रय के पश्चात् की स्थिति

  • ग्राहकों को दी जाने वाली सेवाओं एवं सुविधाओं को इसमें सम्मिलित करते हैं । आवश्यकतानुसार उत्पाद को स्थापित करना, उसके परिचालन का प्रदर्शन करना, आवश्यकता होने पर मरम्मत एवं रख-रखाव करना आदि । विक्रय पश्चात् सेवाओं से ग्राहक को संतुष्टि मिलती है तथा दीर्घकाल तक भविष्य में लाभदायकता पर इसका प्रभाव पड़ता है।

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