Bhaarateey Sanvidhaan ke Maulik Adhikaar | ExamSector
Bhaarateey Sanvidhaan ke Maulik Adhikaar

भारतीय सविंधान के मौलिक अधिकार 

( Fundamental Rights of Indian Constitution )

Part – 2

  • इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है।
  • मौलिक अधिकारों को संविधान की अंतर्रात्मा और संविधान का मैग्नाकार्टा कहा जाता है।
  • इसका वर्णन संविधान के भाग -3 में (अनु. 12 से अनु. 35) है।
  • मूल अधिकार बाध्यकारी अर्थात् वादयोग्य है।
  • मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे। लेकिन 44 वें संविधान संशोधन (1978 ई.) के द्वारा सम्पति का अधिकार (अनु. 31 एवं 19 (1)) को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे संविधान के अनु. 300 (a) के अन्तर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।
  • अब भारतीय नागरिकों को निम्न 6 मूल अधिकार प्राप्त है। 
  1.  समता या समानता का अधिकार (अनु. 14 से 18)
    2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनु. 19 से 22)
    3. शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनु. 23 से 24)
    4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनु. 25 से 28)
    5. सस्कृति और शिक्षा सबधी अधिकार (अनु. 29 से 30)
    6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनु. 32)

इने भी जरूर पढ़े – 

D. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार —

  • अनु. 25 – अंत: करण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता – कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता हैं और उसका प्रचार प्रसार कर सकता है।
  • अनु. 26- धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता – व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना व पोषण करने, विधि सम्मत सम्पत्ति के अर्जन स्वामित्व व प्रशासन का अधिकार है।
  • अनु. 27- राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक सम्प्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है।
  • अनु. 28- राज्य विधि से पूर्णत: पोषित किसी शिक्षा संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलात् सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते।

E. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार – 

  • अनु. 29 – अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण – कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा तथा अपनी शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार होगा।
  • अनु. 30 – शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार -कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी।

F. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनु. 32) :-

  • ‘संवैधानिक उपचारों के अधिकार’ को डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है।
  • अनु. 32- इसके अन्तर्गत मौलिक अधिकरों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को पॉच प्रकार की रिट जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी है। जो निम्न है
  • (1) बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) –यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है, जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है। इसके द्वारा न्यायालय बंदीकरण करनेवाले अधिकारी को आदेश देता है, कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अन्दर उपस्थित करे, जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर सके।
  • (2) परमादेश (Mandamus) – परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है, जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निवर्सा नहीं करता है। इस प्रकार के आज्ञा पत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है।
  • (3) प्रतिषेध-लेख (Porhibition)- यह आज्ञा पत्र सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों द्वारा निम्न न्यायालयों तथा अर्द्ध न्यायायिक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहाँ कार्यवाही न करें, क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
  • (4) उत्प्रेषण (Certiorari)- इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लम्बित मुकदमों के न्याय-निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजे।
  • (5) अधिकार पृच्छा-लेख (Quo-Warranto)- जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है, जिसके रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है, तो न्यायालय अधिकार-पृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक वह इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता, वह कार्य नहीं कर सकता है।

नोट 

  • (i) आपातकाल में नागरिकों से सभी मूल अधिकार छिने जा सकते है लेकिन अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 के मूल अधिकार किसी भी परिस्थिति में नहीं छिने जा सकते है।
  • (ii) सेना, अर्द्धसैनिक बल, पुलिसकर्मी, विदेशी नागरिकों से मूल अधिकार छिने जा सकते है।

इने भी जरूर पढ़े – 

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Leave A Comment For Any Doubt And Question :-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *