राजस्थान का बांगर प्रदेश | ExamSector
राजस्थान का बांगर प्रदेश

राजस्थान का बांगर प्रदेश

  • पश्चिमी रेतीले मैदान एवं अरावली पर्वतमाला के मध्य विस्तृत अर्द्धशुष्क मैदान को ‘राजस्थान बांगर’ कहते हैं, वास्तव में यह एक अर्द्ध मरूस्थलीय क्षेत्र है।
  • राजस्थान बांगर को चार उपविभागों में बाँटा जा सकता है –

(i) लूनी बेसिन (गोडवाड़ क्षेत्र) :

  • पाली, जालौर, बाड़मेर जिले का दक्षिणी भाग एवं सिरोही जिलों का उत्तर-पश्चिमी भाग शामिल हैं। लूनी एवं उसकी सहायक नदियाँ इस क्षेत्र में बहती हैं।
  • दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान की सर्वोच्च पर्वत चोटी लूनी बेसिन के अन्तर्गत जालौर जिले में डोरा पर्वत (869 मी.) है, जो जसवन्तपुरा की पहाड़ियों में स्थित है। ये पहाड़ियाँ अरावली पर्वतमाला का ही विस्तार हैं।
  • इस क्षेत्र की अन्य महत्त्वपूर्ण पहाड़ियाँ ऐसराणा पर्वत, रोजा भाखर, कंचनगिरि एवं कन्यागिरी (जालोर) तथा सिवानानाकोड़ा या छप्पन की पहाड़ियाँ (बाड़मेर) हैं।
  • बाड़मेर जिले में मोकलसर से गढ़ सिवाना तक विस्तृत छप्पन पहाड़ियों के समूह को छप्पन की पहाड़ियाँ’ कहते हैं। इन पहाड़ियों में ग्रेनाइट निकलता है।

(ii) नागौर उच्चभूमि :

  • नागौर उच्च भूमि का विस्तार नागौर जिले के अधिकांश भाग एवं जोधपुर जिले के उ.पू. भाग में है। अन्तःप्रवाही सरिताएँ, नमकीन झीलें (सांभर, डीडवाना, डेगाना आदि) एवं चट्टानी-चूनेदार धरातल इस क्षेत्र की प्रमुख भौतिक विशेषताएँ है।
  • इस क्षेत्र की एकमात्र प्रमुख पहाड़ियाँ परबतसर के निकट दृष्टिगोचर होती हैं।
  • यहाँ पर चूना पत्थर एवं संगमरमर का महत्त्वपूर्ण जमाव मिलता है। सफेद संगमरमर के लिए यहाँ का मकराना क्षेत्र (नागौर) विश्वप्रसिद्ध है।

(iii) घग्घर का मैदान :

  • श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिलों के अधिकांश भागों में विस्तृत इस मैदान की एकमात्र नदी घग्घर है। इस मैदान का निर्माण घग्घर एवं सरस्वती आदि अन्य पौराणिक नदियों द्वारा हिमालय की पदस्थली शिवालिक से लाई गई जलोढ़ मिट्टी से हुआ है।
  • यहाँ की एकमात्र नदी घग्घर है जो शिवालिक पहाडियों से निकलती है। इस नदी के पेटे को स्थानीय भाषा में ‘नाली’ कहा जाता है। इस नदी को वैदिक साहित्य में ‘सरस्वती’ एवं लोक साहित्य में ‘हकरा’ (हाकड़ा) कहा जाता है।
  • वर्तमान में यह राज्य का सर्वाधिक गहन सिंचित क्षेत्र है।
  • इंदिरा गांधी नहर, गंग नहर एवं भाखड़ा-नांगल प्रणाली द्वारा इस क्षेत्र में सिंचाई होती है। यहाँ पर सरसों, कपास, गेहूँ, चावल, गन्ना, चुकन्दर, किन्नू, माल्टा एवं फलों की कृषि की जाती है।

(iv) शेखावाटी क्षेत्र–

  • शेखावाटी क्षेत्र में सीकर, झुंझुनूं, चूरू जिले तथा नागौर जिले का पूर्वी भाग शामिल है। क्षेत्र के अधिकांश भाग में रेतीले टीले पाए जाते हैं। इन टीलों में ‘खेजड़ी’ के वृक्ष बहुतायत में मिलते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘जांटी’ कहते हैं। राजस्थान में खेजड़ी के वृक्षों का सर्वाधिक संकेन्द्रण शेखावाटी क्षेत्र में ही मिलता है।
  • शेखावाटी क्षेत्र की सबसे महत्त्वपूर्ण पहाड़ियाँ ‘हर्ष की पहाड़ियाँ’ हैं, जो सीकर से 15 किमी. दक्षिणी-पश्चिमी में मलकेड़ा से प्रारम्भ होकर दांतारामगढ़ तक विस्तृत हैं।
  • शेखावाटी क्षेत्र के निचले भागों में चूनेदार चट्टानें मिलती हैं। इन चट्टानों के कारण यहाँ पर कुओं का निर्माण आसान हो गया है। इन कुओं को स्थानीय भाषा में ‘जोहड़’ कहते हैं।
  • शेखावाटी क्षेत्र की एकमात्र महत्त्वपूर्ण नदी कान्तली है, जो सीकर एवं झुंझुनूं जिलों में बहती है। यह एक अन्तःप्रवाही नदी है। सीकर जिले में कान्तली नदी के अपवाह क्षेत्र को ‘तोरावाटी बेसिन’ कहते हैं।
  • इस क्षेत्र के आन्तरिक बालुकास्तूपों में वर्षा का पानी एकत्र हो जाता है, जिसे सर या सरोवर कहते हैं। जैसे-जसूसर, सालिसर, मानसर आदि।
  • यहाँ पर नवीन बरखान बालुका स्तूप पाए जाते हैं।
  • यहाँ पर अरावली पर्वत श्रृंखला सतत न होकर टूटी-फूटी है जिसमें वायु घाटियाँ पाई जाती हैं।

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