राजस्थान की लोक देवियाँ
(राजस्थान की लोक देवियाँ ) Rajasthan ki Lok Deviyan Notes In Hindi
Rajasthan ki Lok Deviyan Notes In Hindi
करणी माता :-
- बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुलदेवी। ‘चूहों वाली देवी’ के नाम से विख्यात।
- जन्म सुआप गाँव के चारण परिवार में। मंदिर : देशनोक (बीकानेर)।
- करणी जी के काबे : इनके मंदिर के चहे। यहाँ सफेद चूहे के दर्शन करणी जी के दर्शन माने जाते हैं।
जीण माता :-
- चौहान वंश की आराध्य देवी। ये धंध राय की पुत्री एवं हर्ष की बहन थी।
- इनके मंदिर का निर्माण रैवासा (सीकर) में पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय राजा हट्टड़ द्वारा करवाया गया। मंदिर में इनकी अष्टभुजी प्रतिमा है।
कैला देवी :-
- करौली के यदुवंश (यादव वंश) की कुल देवी।
- मंदिर : त्रिकूट पर्वत की घाटी (करौली) में। यहाँ नवरात्रा में विशाल लक्खी मेला भरता है।
- इनकी आराधना में लांगुरिया गीत गाये जाते हैं।
शिला देवी :-
- जयपुर के कछवाहा वंश की आराध्य देवी/कुल देवी। इनका मंदिर आमेर दुर्ग में है।
अन्नपूर्णा :-
- आमेर के राजप्रसाद के जलेब चौंक के दक्षिण-पश्चिम कोने में शिलादेवी का दुग्धं धवल मंदिर है। शिलामाता की यह मूर्ति पाल शैली में काले संगमरमर में निर्मित्त है। वर्तमान में बने मंदिर का निर्माण सवाई मानसिंह II (1922 – 1949) ने करवाया था। यह मूर्ति बंगाल में राजा केदार कायथ के राज्य में पूजान्तर्गत थी। मूर्ति की यह प्रसिद्धि थी कि जहाँ यह मूर्ति पूजित होती है उसे कोई जीत नहीं सकता। महाराजा मानसिंह राजा केदार से ही सन् 1604 में यह मूर्ति लाए थे।
- यहाँ राजपरिवार की ओर से सर्वप्रथम पूजा करने के बाद ही जनसामान्य के लिए मंदिर के द्वार खुलते हैं।
जमुवाय माता :-
- ढूँढाड़ के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी। इनका मंदिर जमुवारामगढ़, जयपुर में है।
आईजी माता :-
- सिरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी। इनका मंदिर बिलाडा (जोधपर) में है।
- ये रामदेवजी की शिष्या थी। इन्हें मानी देवी (नवदुर्गा) का अवतार माना जाता हैं।
- इनका मंदिर ‘दरगाह’ व थान ‘बडेर’ कहा जाता है।
राणी सती :-
- वास्तविक नाम ‘नारायणी’। ‘दादीजी’ के नाम से लोकप्रिय।
- झुन्झुनूं में राणी सती के मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है।
आवड़ माता :-
- जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी। इनका मंदिर तेमड़ी पर्वत (जैसलमेर) पर है।
स्वांगिया जी माता :-
- सुगनचिड़ी को आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है।
शीतला माता :-
- चेचक की देवी। बच्चों की संरक्षिका देवी।
- मंदिर – चाकसू (जयपुर) जिसका निर्माण जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी ने करवाया था। चैत्र कृष्णा अष्टमी को वार्षिक पूजा व इस मंदिर में विशाल मेला भरता है। इस दिन लोग बास्योड़ा मनाते हैं।
- जांटी (खेजड़ी) को शीतला मानकर पूजा की जाती है।
- इनकी पूजा खंडित प्रतिमा के रूप में की जाती है तथा पुजारी कुम्हार होते है। इनकी सवारी ‘गधा’ है।
सुगाली माता :-
- आउवा के ठाकुर परिवार की कुलदेवी सुगाली माता पूरे मारवाड़ क्षेत्र की जनता की आराध्य देवी रही है। इस देवी प्रतिमा के दस सिर और चौपन हाथ है।
नकटी माता :-
- जयपुर के निकट जय भवानीपुरा में ‘नकटी माता’ का प्रतिहारकालीन मंदिर है।
ब्राह्मणी माता :-
बारां जिले के अन्ता कस्बे से 20 किमी. दूर सोरसन ग्राम के पास ब्राह्मणी माता का विशाल प्राचीन मंदिर है जहाँ देवी की पीठ का शृंगार होता है एवं पीठ की ही पूजा-अर्चना की जाती है एवं भक्तगण भी देवी की पीठ के ही दर्शन करने आते हैं। विश्व में संभवतः यह अकेला मंदिर है जहाँ देवी की पीठ की ही पूजा होती है अग्र भाग की नहीं। यहाँ माघ शुक्ला सप्तमी को गधों का मेला भी लगता है।
जिलाणी माता :-
- अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे की लोक देवी। यहाँ इनका प्रसिद्ध मंदिर है।
अम्बिका माता :-
- जगत (उदयपुर) में इनका मंदिर है, जो मातृदेवियों को समर्पित होने के कारण शक्तिपीठ कहलाता है । जगत का मंदिर ‘मेवाड़ का खजुराहो’ कहलाता है। यह राजा अल्लट के काल में 10वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में महामारू शैली में निर्मित्त है।
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