राजस्थान की कृषि
Agriculture of Rajasthan ( राजस्थान की कृषि )
rajasthan ki krishi
राजस्थान में कृषि की महत्वपूर्ण विशेषताएँ
- राजस्थान के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 121.91% (प्रचलित कीमतों पर) रही है। (राज. की आर्थिक समीक्षा, 2009-10)
- राजस्थान देश का एक महत्वपूर्ण कृषि प्रधान राज्य है। यहाँ की कुल आबादी का लगभग 70% हिस्सा कृषि, कृषि आधारित उद्योगों एवं पशुपालन पर निर्भर है।
- प्रदेश के कुल कृषित क्षेत्रफल का लगभग 30 प्रतिशत भाग सिंचित है।
- प्रदेश को लगभग हर साल अनावृष्टि, असमान वर्षा जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। वर्षा पर निर्भरता के कारण राज्य में बोये जाने वाले (कृषित) क्षेत्र तथा कृषि उत्पादन में वर्ष-दर-वर्ष उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। इन्हीं कारणों से राज्य में कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा जाता है।
- राजस्थान में भारत के कुल कृषित क्षेत्रफल का लगभग 11 प्रतिशत है परन्तु सतही जल की उपलब्धता देश की मात्र 1 प्रतिशत ही है।
- राज्य में कृषि जोतों का औसत आकार 3.65 (वर्ष 2000-01) हैक्टेयर (देश में सर्वाधिक) है जो देश के औसत कृषि जोत आकार (1.32 हैक्टेयर) से अधिक है।
- राज्य के कुल कृषित क्षेत्रफल का 2/3 भाग (लगभग 65 प्रतिशत) खरीफ के मौसम में बोया जाता है।
- राज्य का बाजरे के उत्पादन व क्षेत्रफल दोनों दृष्टि से देश में प्रथम स्थान है। राज्य में कृषि में सर्वाधिक क्षेत्रफल बाजरे का है।
- राज्य में बंजर व व्यर्थ भूमि का सर्वाधिक क्षेत्रफल जैसलमेर जिले में मिलता है। कृषि क्षेत्र का (पशुपालन सहित) राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में सामान्यतः 24 से 30 प्रतिशत हिस्सा रहता है। (वर्ष 2008-09 में 27.19%) |
- राजस्थान में तिलहन फसलों में सर्वाधिक उत्पादन राई व सरसों का, अनाज में गेहूँ का एवं दालों में सर्वाधिक चने का होता है। राजस्थान में सर्वाधिक सिंचित क्षेत्रफल (जिले के कृषि क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में) गंगानगर जिले में (87%) तथा न्यूनतम चूरू जिले में (5%) है।
- मोटे अनाजों के अधीन बोये गये क्षेत्र में योजना काल (1951-2008) में कमी हुई है।
- राज्य में खरीफ फसलों में सर्वाधिक क्षेत्र बाजरे का व रबी फसलों में सर्वाधिक क्षेत्र गेहूँ का रहता है।
- राज्य में कुल कृषित क्षेत्रफल सर्वाधिक बाड़मेर जिले में तथा न्यूनतम राजसमंद जिले में है।
- सोजत (पाली) की मेहंदी के अतिरिक्त लाल सुर्ख रंग के लिए गिलूंड (राजसमंद) की मेहंदी भी प्रसिद्ध है।
राजस्थान में कृषि पद्धतियों का वर्गीकरण
शुष्क कृषि (बारानी)-
- 50 सेमी. से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा जल का सुनियोजित रूप से संरक्षण व उपयोग कर कम पानी की आवश्यकता वाली व शीघ्र पकने वाली फसलों की कृषि की जाती है। यह कृषि राज्यों के अधिकांश जिलों में की जाती है।
आर्द्र कृषि-
- 100 सेमी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उपजाऊ कांप व काली मिट्टी पर उन्नत व व्यापारित फसल प्राप्त की जाती है, वह ‘आर्द्र कृषि’ कहलाती है। राज्य के बारां, झालावाड़, कोटा, बाँसवाड़ा, एवं चित्तौड़गढ़ में आर्द्र कृषि की जाती है।
झूमिंग कृषि-
- आदिवासियों द्वारा डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ एवं बाँसवाड़ा क्षेत्र में जंगल में आग लगाकर बची राख फैलाकर वर्षा होने पर अनाज बोकर फसल तैयार की जाती है। उसे झूमिंग या स्थानान्तरित कृषि कहते हैं। आदिवासियों में यह वालरा’ नाम से जानी जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों की वालरा ‘चिमाता’ एवं मैदानी क्षेत्रों की वालरा ‘दजिया’ कहलाती है।
सिंचित कृषि-
- राज्य की लगभग 32 प्रतिशत कृषि भूमि पर वर्षा के अलावा अन्य स्रोतों से पानी देकर फसल तैयार की जाती है। यह 50 से 100 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है। अलवर, भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा, अजमेर, गंगानगर, हनुमानगढ़ आदि जिले इस क्षेत्र में आते हैं।
राज्य की फसलों का वर्गीकरण
खरीफ (सियालू) —
- यह फसलें जून-जुलाई में बोई जाती हैं व सितम्बर-अक्टूबर में काटी जाती हैं। चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, अरहर, उड़द, मूंग, चवला, मोठ, मूंगफली, अरण्डी, 90 प्रतिशत खरीफ की फसलें बारानी क्षेत्र में पैदा की जाती है, जो पूर्णतः वर्षा पर निर्भर होती हैं। खाद्यान्नों में बाजरे का कृषित क्षेत्रफल सर्वाधिक है।
रबी (उनालू) —
- रबी की फसलें अक्टूबर-नवम्बर में बोकर मार्च-अप्रेल में काट ली जाती हैं। सर्वाधिक क्षेत्र गेहूँ का होता है। रबी तिलहनों में मुख्यतः राई व सरसों की खेती होती है। रबी की फसलें-गेहूँ, जौ, चना, मसूर, मटर, सरसों, अलसी, तारामीरा, सूरजमुखी, धनिया, जीरा, मेथी आदि।
जायद-
- पानी की उपलब्धता वाले राज्य के कुछ क्षेत्रों में एक तीसरी फसल भी मार्च से जून के मध्य ली जाती है, जिसे ‘जायद’ कहते हैं। इसमें तरबूज, खरबूजा, ककड़ी व सब्जियाँ पैदा की जाती हैं।
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