भूकंप क्या है ? भूकम्पीय तरंग, प्रकार
Bhukamp vigyan notes in hindi
भूकम्प विज्ञान के साक्ष्य (Evidences of Seismology) :-
- यह वह विज्ञान है जिसमें भूकम्पनीय तरंगों का सिस्मोग्राफ द्वारा अंकन करके अध्ययन किया जाता है । भूकम्प (Earthquake) भूपटल का आकस्मिक कम्पन्न है जो भूगर्भ में उत्पन्न होता है । भूकम्प मूल भूगर्भ में स्थित वह स्थान जहाँ से कम्पन्न सर्वप्रथम उत्पन्न होता है । भूकम्पीय तरंगे भूकम्प के समय भूकम्प की कम्पन द्वारा अपनाया गया मार्ग होती है ये तरंगे तीन प्रकार की होती है। प्राथमिक (P) तरंगे सबसे तीव्र गति से चलती है एवं ठोस, तरल व गैस तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती है, द्वितियक (S) तरंगे केवल ठोस पदार्थों के माध्यम से चलती है तरल पदार्थों से होकर नही गुजर सकती, धरातलीय (L) तरंगे धरातल पर ही चलती है एवं अधिकेन्द्र पर सबसे बाद मे पहुँचती है व सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं । भूकम्पीय छाया क्षेत्र भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° व 140° के बीच का क्षेत्र होता 2 / जहा कोई भी भूकम्पनीय तरंगे अभिलेखित नही होती है। (चित्र सं. 4.1)
भूकम्पीय तरंग –
- भूकम्पीय तरंगों के भ्रमण पथ व गति के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग के विषय में जानकारी प्राप्त होती है ये लहरें समान घनत्व वाले भाग में सीधी चलती हैं परन्तु भुकम्प केन्द्रों पर इन लहरों के अंकन से ज्ञात होता है कि ये लहरें एक सीधी दिशा में न चलकर वक्राकार मार्ग का अवलम्बन करती हैं इसमें प्रमाणित होता है कि भीतर के घनत्व में विभिन्नता है, परिणाम स्वरूप उनका मार्ग भी वक्राकार हो जाता है, चूंकि आंतरिक भाग की ओर घनत्व बढ़ता है अतः कोर में ये लहरें (P व S) वक्राकार होकर सतह की ओर अवतल हो जाती हैं (चित्र सं. 4. 1) चूंकि S लहरें तरल पदार्थ से होकर नहीं गुजरती है एव 2900 किमी से अधिक गहराई अर्थात भूक्रोड से विलुप्त हो जाती हैं इससे प्रमाणित होता है कि इस 2900 कि.मी. से अधिक गहराई वाला भाग तरल अवस्था में है जो केन्द्र के चारों ओर विस्तृत है। चूंकि चट्टानों के घनत्व में अन्तर के साथ ही इन तरंगों की गति में तीन जगहों पर अधिक अन्तर आता है अतः इन आधारों पर पृथ्वी के आन्तरिक भाग कि तीन परतें निश्चित कि गई हैं (चित्र 4.2)
1. भूपर्पटी क्रस्ट (The Crust) – यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है इसकी औसत मोटाई 30 किमी है यह परत हल्के चट्टानों से बनी है एवं इसका घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेमी है।
2. अनुपटल (The Mantle & Substratum ) : भूपर्पटी के नीचे 2900 किमी की गहराई तक अनुपटल का विस्तार है । अनुपटल का ऊपरी भाग दुर्बलता मण्डल (Asthenosphere) कहलाता है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है उसका मुख्य स्त्रोत यही भाग है। S तरंगें 2900 किमी के बाद लुप्त हो जाती है अर्थात अनुपटल ठोस शैलों से निर्मित है।
3. अभ्यन्तर / भूक्रोड ( The Core ) – 2900 कि.मी. से 6371 कि.मी. की गहराई वाला यह भाग पृथ्वी का सबसे आन्तरिक भाग है जिसका औसत घनत्व 11 ग्राम प्रति घनसेमी है। इस भाग में S तरंगें नहीं पहुंच पाती हैं। इसके दो भाग किये जाते है, प्रथम भाग बाह्य अभ्यंतर है जो तरल अवस्था में है एवं 2900 से 5150 कि.मी. की गहराई तक विस्तृत है द्वितीय भाग आन्तरिक अभ्यन्तर है जो कि सघन है एवं 5150 से 6371 कि.मी. की गहराई तक विस्तृत है । (चित्र सं. 4.3)
prithvi ki aantrik sanrachna Questions And Answers in Hindi
प्रश्न 1. सियाल परत के संघटक तत्व हैं
(अ) सिलिका-मैग्नीशियम
(ब) सोडियम-एल्यूमीनियम
(स) सिलिका-एल्यूमीनियम
(द) सिलिका-लोहा
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प्रश्न 2. वान डर ग्राक्ट के अनुसार ऊपर की परत की अधिकतम गहराई है
(अ) 1200 किमी
(ब) 60 किमी
(स) 2900 किमी
(द) 200 किमी
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प्रश्न 3. स्वैस के वर्गीकरण के परिप्रेक्ष्य में जो कथन गलत है, वह है
(अ) ऊपरी परत का घनत्व 2.7 है।
(ब) सीमा का घनत्व 4.7 से कम है।
(स) निफे में चुम्बकीय गुण पाया जाता है।
(द) सियाल निफे पर तैर रहा है।
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प्रश्न 4. सियाल, सीमा व निफे के रूप में भू-गर्भ का विभाजन किया गया था
(अ) वानडर ग्राक्ट द्वारा
(ब) डेली द्वारा
(स) होम्स द्वारा
(द) स्वैस द्वारा
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प्रश्न 5. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(अ) भूकम्पीय तरंगें
(ब) गुरुत्वाकर्षण बल
(स) ज्वालामुखी
(द) पृथ्वी का चुम्बकत्व