जैवमण्डल की संकल्पना (Concept to Biosphere)
- पृथ्वी पर स्थित सभी स्थान, जहाँ किसी न किसी रूप में जीवन पाया जाता है, जैवमण्डल में सम्मिलित किए जाते हैं । अभी तक प्राप्त वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ब्रह्माण्ड में केवल पृथ्वी पर ही जीवन के लिये अनुकूल दशायें पाई जाती हैं । यद्यपि पृथ्वी पर जीवन के विभिन्न रूप समुद्र की अधिकतम गहराई से लेकर उच्चतम पर्वतीय चोटियों तक पाये जाते हैं, किन्तु वास्तव में अधिकांश प्रभावशाली जीवन पृथ्वी के धरातल से कुछ ही मीटर की ऊँचाई और निचाई तक पाया जाता है ।
- पृथ्वी पर उपलब्ध जैव विविधता में सूक्ष्म प्रोटोजोआ से लेकर विशालकाय व्हेल (Whale) तक के जीव और सूक्ष्म लाइकेन से लेकर विशाल आकार के वृक्ष पाए जाते हैं। यह जैव विविधता पृथ्वी विकास की निरन्तर प्रक्रिया का परिणाम है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीव-जन्तु उस स्थान के पर्यावरण में उपलब्ध भोजन स्त्रोतों पर निर्भर रहते हैं, जिससे उन्हें ऊर्जा एवम् पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं । यह ऊर्जा और पोषक एक उपभोक्ता स्तर से दूसरे उपभोक्ता स्तर में प्रवाहित होते रहते हैं । इसीलिये जैवमण्डल को ऊर्जा और पोषक तत्त्व एक उपभोक्ता स्तर से दूसरे उपभोक्ता स्तर में प्रवाहित होते रहते हैं। इसीलिये जैवमण्डल को ऊर्जा और पोषक तत्त्वों के चक्रीय प्रवाह पर आधारित जैव-तंत्र माना गया है ।
- जैवमण्डल पृथ्वी के धरातल पर पाये जाने वाले जैविक और अजैविक घटकों की परस्पर जटिल क्रियाओं का परिणाम होता है। इन घटकों की इन्हीं पारस्परिक जटिल क्रिया-प्रतिक्रियाओं का अध्ययन पारिस्थितिकी विज्ञान में किया जाता है। सभी जैविक घटक पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील होते हैं और उनकी अधिकांश गतिविधियाँ उपयुक्त पारिस्थितिक पर्यावरण खोजने तथा अनुपयुक्त उद्दीपनों (Stimulation) से अलग रहने से सम्बन्धित होती है। इस प्रकार सभी जीव पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होते हैं।
जीवों में अनुकूलन दो प्रकार का पाया जाता है :-
1. वंशानुगत (Inherited)
2. उपार्जित (Acquired )
- वंशानुगत अनुकूलन जन्म से प्राप्त होता है जैसे संवेदनग्राही अंग (Sense Organs), जबकि उपार्जित अनुकूलन किसी विशेष उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया से उत्पन्न होता है, जैसे किसी बीमारी से बचाव के लिये प्रतिरक्षियों (Antibotics) का निर्माण करना ।
- इसी प्रकार समस्त जीवों में पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति संवेदनशीलता के साथ-साथ उन परिवर्तनों से समायोजन की क्षमता भी होती है, जिसके फलस्वरूप उनका अस्तित्व और जैवमण्डलीय सन्तुलन बना रहता है।
जैवमण्डल की संरचना (Structure of Biosphere)
- जैवमण्डल की संरचना का अध्ययन स्थलमण्डल, जलमण्डल और वायुमण्डल के आधार पर निम्न प्रकार किया जा सकता है :-
स्थलमण्डल :-
- स्थलमण्डल पृथ्वी का ठोस भाग है, जो सम्पूर्ण पृथ्वी के लगभग 29.2 प्रतिशत भाग पर महाद्वीपों और द्वीपों के रूप में विस्तृत है। इसकी ऊपरी सतह असंगठित मिट्टी से निर्मित है, जिसके नीचे चट्टानें पायी जाती हैं। किन्तु जैवमण्डल की दृष्टि से पृथ्वी के धरातल की ऊपरी सतह ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सभी जीव स्थलमण्डल पर प्राप्त मिट्टी से ही पोषण प्राप्त करते हैं ।
जलमण्डल :-
- सम्पूर्ण पृथ्वी के 70.8 प्रतिशत भाग पर महासागर विस्तृत हैं। यदि इसमें नदियों, तालाबों व अन्य जलीय स्त्रोतों को भी सम्मिलित कर लिया जाये, तो पृथ्वी सतह का लगभग 72 प्रतिशत क्षेत्र जल से ढका है, जिसे जलमण्डल कहते हैं । प्राणवायु के बाद जल ही जीव की दूसरी महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है, इसीलिये जल को जीवन कहा गया है । शरीर की आक्सीजन और हाइड्रोजन की आवश्यकताओं की पूर्ति जल से ही होती है। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी सतह पर लगभग 1360 मिलियन क्यूबिक किलोमीटर जल उपलब्ध है, जिसमें से 97 प्रतिशत अर्थात 1320 मिलियन क्यूबिक किलोमीटर जल महासागरों में स्थित है, लगभग 30 मिलियन क्यूबिक किलोमीटर जल बर्फ के रूप में स्थित है और शेष 1 प्रतिशत से भी कम भूमिगत जल के रूप में उपलब्ध है। पृथ्वी की सतह पर उपलब्ध जल एक चक्रीय प्रवाह के रूप में परिवर्तित होता है और फिर संघनन की प्रक्रिया द्वारा वृष्टि के रूप में पृथ्वी पर बरसता है ।
वायुमण्डल :-
- पृथ्वी की सतह के चारों ओर गैसों का एक आवरण पाया जाता है, जिसे वायुमण्डल कहते हैं। यह वायुमण्डल पृथ्वी की सतह से हजारों किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत है। इसमें अनेक प्रकार की गैसें, जलवाष्प और धूलिकण मिश्रित होते हैं । इन तत्त्वों का मिश्रण सर्वत्र समान रूप से नहीं पाया जाता, बल्कि ऊँचाई, अक्षांश, मौसम आदि के साथ बदलता रहता है। वायुमण्डल की सबसे निचली परत क्षोभमण्डल में जलवाष्प और धूलिकणों को छोड़कर अन्य गैसों का औसत प्रतिशत सर्वत्र लगभग समान पाया जाता है, क्योंकि हवायें, वायुधाराएँ और गैस का प्लवनशील स्वभाव उनके अनुपात को लगातार समान बनाए रखते हैं।
- वायुमण्डल की गैसों में सबसे अधिक मात्रा नाइट्रोजन (78%) और आक्सीजन ( 21%) की पाई जाती है। शेष 1 प्रतिशत में अन्य गैसें जैसे कार्बन डाईआक्साइड, नियोन, आरगन, ओजोन आदि सम्मिलित हैं। विभिन्न परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि क्षोभमण्डल में 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक वायुमण्डलीय गैसों के प्रतिशत अनुपात में भिन्नता आती जाती है। भारी एवम् सघन गैसें जैसे कार्बन डाईआक्साइड केवल 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक ही पाई जाती है। ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैसें भी 140 किलोमीटर की ऊँचाई के बाद लगभग लुप्त हो जाती हैं। 150 किलोमीटर की ऊँचाई के बाद केवल हाइड्रोजन गैस ही महत्त्वपूर्ण गैस के रूप में पाई जाती है।
- आक्सीजन अर्थात् प्राणवायु सभी जीवों के श्वसन के लिए अत्यन्त आवश्यक गैस है, जबकि कार्बन डाईआक्साइड पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए अति आवश्यक गैस है। इसी प्रकार सभी जीवों में नाइट्रोजन एक महत्त्वपूर्ण घटक होता है, जो उन्हें भोजन से प्राप्त होता है ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जैवमण्डल के समस्त जैविक घटक तीनों मण्डलों से जीवन के लिए आवश्यक तत्त्व प्राप्त करते हैं। वायुमण्डल से जहाँ प्राणवायु प्राप्त होती है, वहीं जलमण्डल से जल की प्राप्ति होती है, जो जीवों के प्रोटोप्लाज्म का 75 प्रतिशत भाग बनाता है । स्थल मण्डल से जीवों को भोज्य पदार्थ प्राप्त होते हैं । इसीलिये यह कहा जा सकता है कि जैवमण्डल से बाहर जीवन की सम्भावना नगण्य है।
जैवमंडल का अर्थ व महत्व FAQ –
प्रश्न 1. विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता किस देश में पायी जाती है?
(अ) ब्राजील
(ब) भारत
(स) दक्षिण अफ्रीका
(द) जर्मनी
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प्रश्न 2. ‘वन्दनवार’ हेतु कौन-से वृक्षों की पत्तियाँ सामान्यतः प्रयुक्त की जाती हैं?
(अ) अशोक एवं पीपल
(ब) आम एवं जामुन
(स) अशोक एवं आम
(द) बरगद एवं पीपल
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प्रश्न 3. जिसमें अधिकतम जैव विविधता मिलती है-
(अ) नम प्रदेश
(ब) प्रवाल भित्तियाँ
(स) मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र
(द) उष्ण कटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र
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प्रश्न 4. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान स्थित है-
(अ) भरतपुर
(ब) अलवर
(स) जयपुर
(द) सवाईमाधोपुर
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प्रश्न 5. राजस्थान का राज्य वृक्ष है-
(अ) ढाक
(ब) खेजड़ी
(स) इमली
(द) कदम्ब