दक्षिणी-पूर्वी पठार (हाड़ौती का पठार)
दक्षिणी-पूर्वी पठार (हाड़ौती का पठार)
- दक्षिणी-पूर्वी पठार वस्तुतः मालवा के पठार का उत्तरी-पश्चिमी भाग है जो मध्यम काली मिट्टी से बना है जहाँ कपास की फसल अच्छी होती है।
- चम्बल, पार्वती, काली सिंध, परवन, आहू एवं इनकी सहायक नदियाँ इस क्षेत्र में बहती हैं। (राजस्थान में सर्वाधिक नदियों वाला क्षेत्र)
हाड़ौती के पठार का विस्तार राज्य के कोटा, बूंदी, बारा, झालावाड़, सवाईमाधोपुर (द.), करौली (द.), धौलपुर (द.) जिलों एवं चित्तौड़गढ़ जिले के भैंसरोड़गढ़ क्षेत्र में है। - ‘ऊपरमाल का पठार’ भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़) से बिजोलिया (भीलवाड़ा) तक विस्तृत है।
- दक्षिणी-पूर्वी पठार को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है—विंध्यन कगार भूमि एवं दक्कन लावा पठार।
(i) विंध्यन कगार भूमि –
- धौलपुर, करौली एवं सवाईमाधोपुर जिलों में बलुआ पत्थरों से निर्मित यह कगार भूमि चम्बल के बायें किनारे पर तीव्र ढाल से युक्त है।
(ii) दक्कन का लावा पठार –
- कोटा, बूंदी, झालावाड़, बारां जिलों एवं भैंसरोड़गढ़ क्षेत्र (चित्तौड़गढ़) में विस्तृत लावा द्वारा फैलाई गई मध्यम काली मिट्टी के अवशेषों युक्त मिट्टी वाला यह उपजाऊ क्षेत्र माना जाता है।
- राज्य की सर्वाधिक वर्षा इसी क्षेत्र के झालावाड़ जिले में औसत 100 से.मी. वार्षिक होती है।
- यहाँ की प्रमुख फसलें कपास, सोयाबीन, अफीम, धनिया एवं संतरे हैं।
- मुकुन्दवाड़ा (मुकुन्दरा) की पहाड़ियाँ (कोटा-झालावाड़) एवं बूंदी की पहाड़ियाँ इसी क्षेत्र में स्थित हैं। ‘
- हाड़ौती का पठार, अरावली एवं विंध्याचल पर्वतमाला को जोड़ने वाली कड़ी है।
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