राजस्थान में सूखा, अकाल एवं मरुस्थलीकरण
राजस्थान में सूखा, अकाल एवं मरुस्थलीकरण ( Drought famine and desertification in Rajasthan )
- राजस्थान, भारत में अकाल एवं सूखे से सर्वाधिक प्रभावित राज्य है।
- भारत का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला सूखा क्षेत्र राजस्थान में है। उत्तरी एवं पश्चिमी राजस्थान, कच्छ एवं सौराष्ट्र (गुजरात), विदर्भ (महाराष्ट्र) तेलंगाना (आन्ध्रप्रदेश), रायलसीमा (तमिलनाडु), मध्य कर्नाटक, प. मध्यप्रदेश, दक्षिणी हरियाणा एवं छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा के आंतरिक क्षेत्र भारत के सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं।
- राज्य में बार-बार अकाल पड़ने के प्रमुख कारण अरावली पर्वतमाला की अवस्थिति, मरुस्थल का विस्तार, वनस्पति का अभाव, मिट्टी की प्रकृति, वाष्पीकरण की तीव्रता, वर्षा की कमी एवं अनियमितता एवं पवनों की दिशा है।
राजस्थान में अकाल चार प्रकार के माने गए हैं
- अन्नकाल–जिसमें कृषि उपज (अन्न) का उत्पादन नहीं होता।
- जल काल-जिसमें जल का अभाव हो जाता है।
- तृणकाल—जिसमें पशुओं के लिए चारे (तृण) का अभाव होते हैं।
- त्रिकाल—जिसमें अन्न, जल एवं तृण (चारा) तीनों का अभाव रहता है। (राजस्थान में वर्ष 1987-88 में त्रिकाल पड़ा था।)
- ‘तीजो कुरियो आठवो काल’ (राजस्थानी कहावत) अर्थात राज्य में हर तीसरे वर्ष कुरिया (अर्द्ध-अकाल) एवं प्रति आठवें वर्ष भयंकर अकाल अवश्य पड़ता है।
- विक्रम संवत् 1900 एवं 1902 (1843 एवं 1844 ई.) में पड़े विनाशकारी अकाल को ‘सहसा-भदूसा’ कहा गया।
- अब तक का सबसे विनाशकारी अकाल वि.सं. 1956 (1899 ई.) में पड़ा अकाल माना जाता है। यह एक भयावह एवं भयंकर त्रिकाल था जिसे ‘छपन्ना काल’ या ‘छप्पनिये का काल’ कहा जाता है। यह अकाल इतना भयंकर था कि लोगों ने पेड़ों की छाल खाकर अपना भरण-पोषण किया।
राजस्थान में सूखा एवं अकाल के कारण
प्रदेश में अकाल एवं सूखा पड़ने के कारणों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
(अ) प्राकृतिक कारण
- शुष्क जलवायु।
- उच्च तापमान।
- वर्षा की मात्रा में कमी।
- वनों का क्षरण।
- ओलावृष्टि एवं पाला।
- पर्यावरण असन्तुलन।
- पारिस्थितिकी अवक्रमण।
- नदी-मार्गों में परिवर्तन।
(ब) मानवीय कारण
- वनों का विनाश।
- पर्यावरण-प्रदूषण।
- वन्य जीवों का विनाश (पारिस्थितिकी असंतुलन)।
- भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन ।
- वर्षा जल का संरक्षण नहीं करना।
- जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि।
(स) आर्थिक कारण
- संसाधनों का सीमित होना।
- मरुस्थलीय प्रदेश की कमजोर अर्थव्यवस्था।
- विभिन्न फसलों का रोग-ग्रस्त हो जाना।
- जनसंख्या वृद्धि।
- पशुधन की संख्या में वृद्धि।
- परम्परागत एवं अवैज्ञानिक कृषि।
- राजस्थान में अकाल के कारण मरुस्थलीकरण की तीव्रता भी बढ़ रही है।
- अकाल पड़ने पर राज्य के सूखा प्रणव क्षेत्र में रहने वाली लगभग 70% जनसंख्या, जिसका प्रमुख आधार कृषि एवं पशुपालन है, बेरोजगार हो जाती है। इस दौरान राज्य के किसान या तो निकटवर्ती कस्बों एवं शहरों में मजदूरी के लिये चले जाते हैं या फिर अन्य राज्यों में कृषि एवं मजदूरी हेतु चले जाते हैं। ये लोग मुख्यत: गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा राज्यों की ओर पलायन करते हैं।
- पिछले तीन दशकों में अकाल एवं सूखे से सर्वाधिक प्रभावित पश्चिमी राजस्थान से अधिकांश परिवारों में से युवक ‘दक्षिणी भारत’ की ओर स्थायी रूप से मजदूरी करने के उद्देश्य से गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोआ, तमिलनाडु एवं आन्ध्रप्रदेश राज्यों में जा रहे हैं, जिससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कुछ हद तक मजबूत हुई है। ऐसे प्रवासियों की सर्वाधिक संख्या मुम्बई नगर में देखने को मिलती है।
- जुलाई-अगस्त के महीने तक पर्याप्त वर्षा नहीं होने पर राज्य में अकाल की स्थिति को बनते देख पशुपालक (विशेष रूप से भेड, बकरी, गाय एवं ऊँट पालक) राज्य से पलायन करते हैं। यह पलायन मध्यप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में अधिक होता है।
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