राजस्थान में वन एंव वन्यजीव अभयारण्य
Forest and Wildlife Conservation in Rajasthan ( राजस्थान में वन एंव वन्यजीव अभयारण्य )
rajasthan me vanya jiv abhyarn
- -राज्य में वन संरक्षण की पहली योजना जोधपुर नरेश ने 1910 में बनाई, इसके तहत मारवाड़ शिकार नियम, 1921 बना। कोटा में 1924 में एवं जयपुर में 1931 में शिकार कानून बने। 1935 में अलवर रियासत ने वन अधिनियम बनाया।
- -बाँसवाड़ा, बारां, चित्तौड़गढ़ एवं प्रतापगढ़ जिलों में धोकड़ा एवं महुआ के साथ सागवान के वन मिलते हैं।
- -चित्तौड़गढ़, उदयपुर एवं राजसमन्द जिलों में चन्दन के बालवृक्ष (लठे) मिलते हैं। हल्दीघाटी (खमनौर) के वनों को चंदन के वन’ कहते हैं।
राजस्थान में सर्वाधिक वन क्षेत्र वाले 4 जिले–
- उदयपुर
- चित्तौड़गढ़
- करौली
- अलवर
न्यूनतम वन क्षेत्र वाले 4 जिले—
- चूरू
- हनुमानगढ़
- नागौर
- जोधपुर
प्रतिशत के रूप में सर्वाधिक वन क्षेत्र वाले 4 जिले—
- उदयपुर (36.62%)
- करौली (35.68%)
- बाराँ (32.08%)
- सिरोही (31.12%)
प्रतिशत के रूप में सबसे कम वन क्षेत्र वाले 4 जिले—
- चूरू (0.42%)
- जोधपुर (1.07%)
- नागौर (2.36%)
- जैसलमेर (1.40%)
-राज्य का सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला उदयपुर है इस जिले में राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 14% वन पाये जाते हैं।
-राज्य के न्यूनतम वन क्षेत्र वाला जिला चूरू है, इस जिले में राज्य । के कुल वन क्षेत्र के मात्र 0.22% वन पाये जाते हैं।
राज्य की घासें
- सेवण (लीलोण) एवं धामण-जैसलमेर, बाड़मेर क्षेत्र में पाई जाने वाली पौष्टिक घास, जो मरुस्थल विस्तारण को नियन्त्रण करती है।
- सुगणी-जैसलमेर के आस-पास के क्षेत्र में पाई जाने वाली, इस घास से ‘सिस्क्यूटरपेनस’ तेल निकाला जाता है, जिसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
- खस-सवाईमाधोपुर, भरतपुर, टोंक जिलों में पाई जाने वाली इस घास की जड़ों से सुगंधित तेल निकाला जाता है जो इत्र व शरबत बनाने के काम आता है।
- शतावरी (नाहरकोटा)-आयुर्वेदिक महत्त्व की इस घास की जड़े पौरुषवर्द्धक एवं महिलाओं में दुग्धवर्द्धक होती है।
वन प्रशिक्षण केन्द्र
- मरुवन प्रशिक्षण केन्द्र, जोधपुर
- वानिकी प्रशिक्षण केन्द्र, जयपुर
- राजस्थान वन प्रशिक्षण केन्द्र, अलवर
वन अनुसंधान केन्द्र
- विश्व वानिकी वृक्ष उद्यान झालाना, जयपुर
- ग्रास फार्म नर्सरी, जयपुर
- वन अनुसंधान कार्य, गोविन्दपुरा, जयपुर
- वन अनुसंधान फार्म, बांकी, उदयपुर
अमृतादेवी स्मृति पुरस्कार-1994 से प्रारम्भ यह पुरस्कार राज्य सरकार द्वारा तीन श्रेणियों में दिया जाता है
- (A) वन विकास, संरक्षण एवं वन्य जीव सुरक्षा में उत्कृष्ट योगदान देने वाली वन सुरक्षा समिति/पंचायत/ग्राम स्तरीय संस्था को (50,000 रुपये)
- (B) वन विकास, संरक्षण एवं वन्य जीव सुरक्षा में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्ति को (25,000 रुपये)
- (C) वन्य जीव संरक्षण एवं सुरक्षा में योगदान देने वाले व्यक्ति को (25,000 रुपये)
कैलाश सांखला वन्य जीव संरक्षण पुरस्कार–
- राज्य सरकार द्वारा वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति को इस पुरस्कार के अन्तर्गत 50,000 रुपये व प्रशस्ति पत्र दिया जाता है।
राज्य में वनों के प्रकार
(i) शुष्क सागवान वन-
- बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, राजसमन्द, उदयपुर, कोटा एवं बारां जिलों में पाये जाते हैं, जो कुल वनों का 7% हैं। यहाँ पर वार्षिक वर्षा 80 से 100 से.मी. तक होती है।
(ii) मिश्रित पतझड़ वन-
- राज्य के कुल वनों के 27% भाग पर फैले इन वनों में साल व धोकड़ा के वृक्ष बहुतायत में मिलते हैं। इनके अलावा खैर, ढाक एवं बांस अन्य महत्त्वपूर्ण वृक्ष हैं। ये वन चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, बूंदी, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर एवं कोटा जिलों में मिलते हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 80 से.मी. है।
(iii) शुष्क वन
- राज्य के कम वर्षा वाले उत्तरी-पश्चिमी भार में ये वन पाए जाते हैं। इन वनों में खेजड़ी, बेर, कैर पर थोर, बबूल, रोहिड़ा आदि के वृक्ष एवं झाड़ियाँ मिलती हैं। कुछ क्षेत्रों में इनके साथ सेवण, धामण एवं ताराकरी घामें भी मिलती हैं।
- शुष्क वनों का सबसे महत्त्वपूर्ण वृक्ष खेजड़ी है। इसे राजस्थान का राज्य वृक्ष/कल्पवृक्ष माना जाता है। संस्कृत में इसे ‘शमी’ एवं स्थानीय भाषा में ‘जांटी’ कहते हैं (शेखावाटी क्षेत्र)। खेजड़ी के हरे फलों को सांगरी एवं सूखने के बाद खोखा कहते हैं। खेजड़ी की हरी पत्तियाँ ‘लूंब’ या ‘लूक’ कहलाती हैं। खेजड़ी वृक्ष की पूजा विजयादशमी को की जाती है।
(iv) अर्द्ध (उपोष्ण) सदाबहार वन
- क्षेत्र—मा.आबू (सिरोही)।
- वर्षा-150 से.मी. वार्षिक।
- वृक्ष-आम, बांस, नीम, सागवान आदि।
अन्य प्रकार के वन
- सालर वन– उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, सिरोही, अजमेर, अलवर, जयपुर जिलों में पाये जाने वाले इन वनो में साल वृक्ष की प्रधानता होती है।
- पलास (ढाक) वन- राजसमंद के आस-पास के क्षेत्रो में पाये जाने वाले यह वन ‘जंगल की ज्वाला’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
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