राजस्थान के इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत ( Part :- 1 )
राजस्थान के इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत
राजस्थान के इतिहास का सर्वेक्षण
राजस्थान के इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत को मुख्यत पॉँच भागों में विभाजित किया है।
1. पुरालेखीय स्रोत
2. पुरातात्विक स्रोत
3. ऐतिहासिक साहित्य
4. स्थापत्य एंव चित्रकला
5. आधुनिक ऐतिहासिक ग्रंथ एंव इतिहासकार
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1. पुरालेखीय स्रोत
- विभिन्न भाषाओं में लिखित रूप से उपलब्ध सामग्री, पुरालेखीय स्रोत कहलाती है। इसमें शिलालेख, सिक्के, ताम्र पत्र, रुक्के, फरमान पट्टे परवाने, राजाओं के पत्र व्यवहार, ब्रिटिश पॉलीटिकल एजेन्टों द्वारा सरकार को प्रेषित रिपोर्ट आदि शामिल हैं।
(1) शिलालेख
- जिन शिलालेखों में केवल किसी शासक की यशोगाथा वर्णित हो उसे ‘प्रशस्ति’ कहते हैं। जैसे–
बिजोलिया शिलालेख (1170 ई.)
- बिजोलिया (भीलवाड़ा) के पार्श्वनाथ मंदिर के पास एक चट्टान पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण रचयिता, गुणभद्र सांभर एवं अजमेर के चौहान शासकों की उपलब्धियों का वर्णन है, चौहानों को वत्सगौत्र के ब्राह्मण बताया गया है तथा विभिन्न नगरों के प्राचीन नाम बताए गए हैं, जैसे-जाबालिपुर (जालोर), शाकम्भरी (सांभर), श्रीमाल (भीनमाल), नड्डुल (नाडोल), दिल्लिका (दिल्ली)।
चीरवे का शिलालेख (1273 ई.)
- उदयपुर से 8 मील दूर चीरवा गाँव के मंदिर के द्वार पर लगा हुआ है।
- 5 गुहिलवंशी शासक महाराणा समरसिंह के समय तक की उपलब्धियों का उल्लेख इसमें मिलता है। ग्राम्य व्यवस्था, सती प्रथा, सामाजिक तथा धार्मिक जीवन पर प्रकाश डाला गया है। (संस्कृत भाषा में)
नेमीनाथ (आबू) मंदिर की प्रशस्ति (1230 ई.)
- माउण्ट आबू के निकट दिलवाड़ा गाँव के नेमीनाथ मंदिर म तेजपाल द्वारा उत्कीर्ण करवाकर लगाया गया। परमार वंशीय राजाओं की उपलब्धियों के साथ वास्तुपाल व तेजपाल के वंशजों का भी विवरण मिलता है।
शृंगी ऋषि शिलालेख (1428 ई.)
- उदयपुर जिले में एकलिंग जी से 6 मील दूर शंगी ऋषि ___ आश्रम पर यह शिलालेख संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण मिला है।
- मेवाड़ के महाराणाओं हम्मीर, क्षेत्रसिंह, लक्षसिंह, मोकल इत्यादि की उपलब्धियों की जानकारी मिलती है।
- इसमें भीलों के सामाजिक जीवन पर प्रकाश भी डाला गया है।
बीकानेर का शिलालेख (1594 ई.)
- बीकानेर दुर्ग (जूनागढ़) के द्वार पर लगा संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण नरेश रायसिंह के समय का यह शिलालेख तत्कालीन समय की महत्त्वपूर्ण जानकारी देता है।
- इस शिलालेख में बीकानेर दुर्ग के निर्माण की जानकारी तथा राव बीका से रायसिंह तक के बीकानेर के राठौड़ शासकों की उपलब्धियों का उल्लेख है।
आमेर का शिलालेख (1612 ई.)
- यह शिलालेख संस्कृत भाषा एवं नागरी लिपि में हैं।
- इसमें आमेर के कछवाहा राजवंश के शासक-पृथ्वीराज, भारमल, भगवन्तदास और मानसिंह का उल्लेख मिलता है।
(2) सिक्के
- अजमेर के चौहान शासकों के 11वीं से 13वीं सदी के चाँदी व ताँबे के सिक्के मिलते हैं। शिलालेखों में चौहानों के सिक्कों के लिए द्रम्म, विंशोपक, रूपक, दीनार आदि नामों का प्रयोग किया गया। पृथ्वीराज चौहान के समय का एक सिक्का मिला है जो 1192 ई. का है। इसके एक तरफ मुहम्मद बिन साम तथा दूसरी तरफ पृथ्वीराज अंकित है। इसके आधार पर कई विद्वान यह मानते हैं कि तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी नहीं ले गया था।
- महाराणा कुम्भा के सिक्कों पर कुम्भकर्ण, कुम्भल मेरू इत्यादि शब्द अंकित हैं।
- अकबर की चित्तौड़ विजय के बाद मेवाड़ में मुगल सिक्के ‘एलची’ चलने लगे।
(3) ताम्रपत्र
- राजा-महाराजा, रानियों, सामन्तों, जागीरदारों एवं समृद्ध लोगों द्वारा दानपुण्य के लिए भूमि का अनुदान दिया जाता था, जिसमें स्थायी अनुदानों को ताम्र चद्दर पर उत्कीर्ण करवाया जाता था जिसे ‘ताम्र पत्र’ कहते थे।
- आहड़ के ताम्र पत्र (1206 ई.) में गुजरात के मूलराज से लेकर भीमदेव द्वितीय तक के सोलंकी राजाओं की वंशावली दी गई है।
- वीरमसिंह देव के ताम्रपत्र (1287 ई.) से वागड़ राजाओं का उल्लेख मिलता है।
- खेरोदा के ताम्र पत्र से (1437 ई.) एकलिंग जी में कुम्भा के प्रायश्चित, प्रचलित मुद्रा एवं तत्कालीन धार्मिक स्थिति की जानकारी मिलती है।
- चीकली ताम्रपत्र (1483 ई.) से किसानों से वसूल किए जाने वाले विविध लाग-बागों का पता चलता है।
- पुर के ताम्रपत्र (1535 ई.) में हाड़ी रानी कर्मवती के जौहर का उल्लेख मिलता है।
(4) अन्य पुरालेखीय स्रोत
- ये स्रोत विभिन्न भाषाओं में लिखित पत्रों, बहियों, पट्टों, फाइलों, फरमानों, रिपोर्टों आदि के रूप में मिलते हैं।
- फारसी भाषा में लिखित फरमान, मंसूर, रुक्का, निशान, हस्बुल हुक्म, इंशा, रुक्केयात तथा वकील रिपोर्ट महत्त्वपूर्ण पुरालेखीय सामग्री हैं।
- जिन बहियों से राजा की दिनचर्या का उल्लेख मिलता है उसे ‘हकीकत बही’ कहा जाता था।
- जिन बहियों में शासकीय आदेशों की नकल होती थी उन्हें हकूमत री बही’ कहा जाता था।
- जिन बहियों से महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से आने वाले पत्रों की नकल रहती थी उन्हें खरीता बही’ कहा जाता था।
- जिन बहियों से सरकारी भवनों के निर्माण सम्बन्धी जानकारी होता थी उन्हें ‘कमठाना बहियाँ’ कहते थे।
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