मध्य प्रदेश में सिंचाई व्यवस्था
मध्य प्रदेश में सिंचाई व्यवस्था
Irrigation System of Madhya Pradesh in Hindi
- मध्य प्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा 75-125 सेंमी. होती है। प्रत्येक वर्ष वर्षा के एकरूप न होने से यहां कृषि को काफी नुकसान पहुंचता है। वर्षा काल में परिवर्तन भी सूखे की स्थिति ला देता है।
- सिंचाई धरातल के जल तथा भूमिगत जल से की जाती है। धरातल का जल नदियों, नहरों और तालाबों से प्राप्त होता है तथा भूमिगत जल कुंओं तथा नलकूपों द्वारा उपलब्ध होता है।
- मध्य प्रदेश में सिंचाई के प्रमुख तीन साधन हैं- 1. नहरें 2. तालाब 3. कुएं।
1. नहरें –
- मध्य प्रदेश के सिंचित प्रदेश का अधिकतर हिस्सा नहरों के अंतर्गत है। प्रदेश में नहरों द्वारा 26.7 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई होती है। मध्य प्रदेश में चम्बल घाटी में अधिकतर सिंचाई नहरों द्वारा होती है। चम्बल घाटी के ग्वालियर, भिण्ड व मुरैना जिलों में एवं बुन्देलखंड के टीकमगढ़ और छतरपुर जिलों में अधिकतर सिंचाई नहरों द्वारा होती है। प्रदेश की मुख्य नहरें निम्नलिखित हैं:
(a) बरना सिंचाई नहर –
- बरना नर्मदा नदी की एक सहायक नदी है। इस नदी की कुल लम्बाई 96 कि.मी. है। नर्मदा से मिलने के पूर्व यह 1.6 कि.मी. लम्बे एक पतले खड्ड से गुजरती है। इसी स्थान पर बांध बनाया गया है। इस नदी का अपवाह क्षेत्र अधिकतर पहाड़ों और वनों से ढंका है। इस क्षेत्र में पालक माटी ताल के निकट बांध बनाकर सिंचाई की जाती है। इसमें 85 वर्ग कि.मी. क्षेत्र का जल इकट्ठा होता है। बांध के जल का फैलाव 70 वर्ग कि.मी. है, जिसकी मात्रा लगभग 40 करोड़ 70 लाख घन मीटर है। इसके दाईं और बाईं ओर दो नहरें निकाली गई हैं, जिनसे लगभग 66400 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।
(b) वेनगंगा नहर –
- यह नहर वेनगंगा नदी से निकाली गई है। यह नहर लगभग 45 कि.मी. लम्बी है और इसकी दो शाखाएं 35 कि.मी. लम्बी हैं। इसके द्वारा मध्य प्रदेश के बालाघाट और महाराष्ट्र के भण्डारा जिले में लगभग 4 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।
(c) हलाली सिंचाई नहर –
- बेतवा घाटी विकास योजना के अन्तर्गत मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में कार्यान्वित की जाने वाली हलाली सिंचाई परियोजना 1968 में पूरी हुई। इससे लगभग 73 हजार एकड़ क्षेत्र में सिंचाई होती है। परियोजना के अन्तर्गत हलाली नदी पर दीवानगंज स्टेशन से लगभग 15 कि.मी. दूर खोआ ग्राम के पास संकरी घाटी में 603 मीटर लम्बा एवं 29 मीटर ऊंचा सीधा ग्रेविटी बांध बनाया गया है। मुख्य नहरों की लम्बाई लगभग 76 कि.मी. है।
(d) चम्बल की नहरें –
- मध्य प्रदेश में चम्बल बांध की नहर मुरैना जिले की श्योपुर तहसील में प्रवेश करती है। इसकी दो शाखाएं हैं। बाईं ओर की शाखा अम्बाह 179 कि.मी. लम्बी है। दाहिनी ओर की शाखा मुरैना है। शाखाओं सहित चम्बल की नहरों से ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना जिलों में 2.50 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।
(e) तवा बांध की नहरें –
- तवा बांध परियोजना होशंगाबाद जिले में तवा और धेनवा नदियों के संगम पर 823 मीटर नीचे की ओर बनाई गई है। इसका बांध 1630 मीटर लम्बा है, इससे दो नहरें निकाली गई हैं, जो 197 कि.मी. लम्बी हैं। इससे लगभग 3 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।
2. तालाब –
- मध्य प्रदेश में तालाब सिंचाई का प्रमुख साधन है, क्योंकि मध्य प्रदेश की अधिकांश भूमि असमतल है, जिसके कारण सभी जगह नहरों की खुदाई नहीं हो सकती, जबकि तालाब के लिए सिर्फ गड्ढों का होना जरूरी है, इसलिए तालाब प्रदेश की सिंचाई का प्रमुख साधन है। मध्य प्रदेश में अधिकांश तालाबों का निर्माण छोटी-छोटी नदियों पर कच्चे बांध बनाकर किया गया है। इस समय प्रदेश में 3.1 प्रतिशत सिंचाई तालाबों से हो रही है। मध्य प्रदेश के मैदानी भागों में, छोटे-बड़े तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है। बालाघाट तथा सिवनी जिलों में भी अधिकतर सिंचाई तालाबों द्वारा की जाती है।
3. कुएं –
- मध्य प्रदेश में सिंचाई के साधनों के रूप में कुओं का स्थान प्रथम है। वर्तमान में कुल सिंचाई का 56.4 प्रतिशत भाग कुओं से सिंचित होता है। कुओं द्वारा सर्वाधिक सिंचाई पश्चिमी मध्य प्रदेश में होती है। कुएं तैयार करने का कार्य तालाब निर्माण के कार्य से अधिक कठिन है, क्योंकि मिट्टी की परत ज्यादा गहरी नहीं है। कुओं के निर्माण में चट्टानें तोड़नी पड़ती हैं। कुओं से सिंचाई करने के लिए उन पर विद्युत या डीजल से चलने वाले पम्पों को लगाकर सिंचाई की जाती है।
वर्षा जल –
- एक वर्ष में राज्य के उत्तर एवं पश्चिमी भागों में न्यूनतम 800 मिमी. से पूर्वी भागों में औसत 1600 कि.मी. तक वर्षा होती है। मध्य प्रदेश में सामान्य औसत वर्षा 1132 मिमी. आंकी गई है एवं इसका अधिकतर हिस्सा दक्षिण-पश्चिमी मानसून के द्वारा जून से सितम्बर माह के दौरान प्राप्त होता है।
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