मध्य प्रदेश की प्रमुख फसलें | ExamSector
मध्य प्रदेश की प्रमुख फसलें

मध्य प्रदेश की प्रमुख फसलें

Madhya Pradesh Ki Pramukh Fasalen

1. चावल –

  • मध्य प्रदेश की एक महत्वपूर्ण फसल चावल (धान) है। प्रदेश में कुल कृषि भूमि के 22.5 प्रतिशत भाग पर इसकी खेती की जाती है। यह अधिक नमी में होने वाली फसल है। अतः यह फसल उन्हीं भाग में अधिक होती है, जहां औसत वार्षिक वर्षा 100 से 125 सेंमी. होती हो एवं जहां हल्की लाल व पीली मिट्टी पाई जाती हो। यह फसल वर्षा ऋतु के प्रारंभ में बोई जाती है और अक्टूबर-नवम्बर माह में काटी जाती है। मध्य प्रदेश में चावल की तीन किस्में बोई जाती हैं- 1. अमन-यह शीतकालीन फसल है, जो कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत है। 2. ओस- यह शीत ऋतु के उपरान्त बोई जाती है तथा कुल उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत इससे मिलता है। 3. बोरो- यह ग्रीष्मकाल में बोई जाती है तथा उत्पादन की दृष्टि से नगण्य है। मध्य प्रदेश के बालाघाट, मंडला, सीधी, छिंदवाड़ा, बैतूल, रीवा, सतना आदि जिलों में धान की खेती होती है।

2. गेहूं –

  • गेहूं मध्य प्रदेश की प्रथम महत्वपूर्ण फसल है। रबी की फसलों का सबसे अधिक क्षेत्र गेहूं के अन्तर्गत है। प्रदेश के 35.49 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती की जाती है। गेहूं की कृषि अधिकांशतः मध्य प्रदेश से उसी क्षेत्र में होती है, जहां वर्षा का औसत 75 में 125 सेंमी. होता है। जहां वर्षा कम होती है, वहां सिंचाई के माध्यम से भी गेहूं की खेती की जाती है। मध्य प्रदेश में गेहूं अक्टूबर-नवम्बर में बोया जाता है तथा मार्च-अप्रैल में तैयार हो जाने पर फसल काट ली जाती है। गेहूं की खेती मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में होती है। प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में ताप्ती और नर्मदा, तवा, गंजाल, हिरण आदि नदियों की घाटियों और मालवा के पठार की काली मिट्टी के क्षेत्रों में सिंचाई के द्वारा गेहूं पैदा किया जाता है। प्रदेश के होशंगाबाद, सीहोर, विदिशा, जबलपुर, गुना, सागर, ग्वालियर, निमाड़, उज्जैन, इंदौर, रतलाम, देवास, मंदसौर, झाबुआ, रीवा और सतना जिलों में गेहूं का उत्पादन मुख्य रूप से होता है।

3. सोयाबीन –

  • देश में 100 से 150° सेंटीग्रेड मध्यम उच्च तापमान में देश में जितना सोयाबीन पैदा होता है, उसका 82.1 प्रतिशत भाग अकेले मध्य प्रदेश में पैदा होता है। इसलिए मध्य प्रदेश को सोयाबीन प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है। इसका उत्पादन करने वाले प्रमुख क्षेत्र इंदौर, धार, उज्जैन, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, सिवनी, भोपाल, गुना, शाजापुर, आगर एवं रतलाम हैं।

4. गन्ना –

  • मध्य प्रदेश में चीनी के 11 कारखाने हैं। इस फसल को उच्च तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसकी उपज चिकनी दोमट मिट्टी में होती है। इसके लिए तापमान 20°-27° सेंटीग्रेड तथा वर्षा 100 से 200 सें.मी. के बीच होती है।

5. तिलहन –

  • राज्य में उत्पादित प्रमुख तिलहनों में सरसों, तिल एवं अलसी प्रमुख हैं। तिल, खरीफ तथा अलसी व सरसों रबी की फसलें हैं। भारत में सर्वाधिक अलसी मध्य प्रदेश में ही होती है। तिल अधिकांशतः हल्की मिट्टी और कम वर्षा के क्षेत्रों में होता है। अलसी सभी प्रकार की मिट्टी में होती है, जहां पर्याप्त नमी होती है। तिल का उत्पादन प्रमुख रूप से उत्तरी-पश्चिमी मध्य प्रदेश के छतरपुर, सीधी, होशंगाबाद, शिवपुरी आदि जिलों में होता है। अलसी का उत्पादन होशंगाबाद, बालाघाट, झाबुआ, सतना, रीवा, सागर, गुना तथा पन्ना जिलों में अधिक होता है।

6. कपास –

  • यह प्रदेश की महत्वपूर्ण नकदी फसल है। भारत में कपास उत्पादन की दृष्टि से मध्य प्रदेश का स्थान पांचवां है। इस फसल की बुवाई जून में की जाती है और नवम्बर से मार्च तक चुनाई की जाती है। मालवा के पठार एवं नर्मदा-ताप्ती के घाटियों की काली और कछारी मिट्टी में इसका उत्पादन किया जाता है। प्रदेश में छोटे, मध्यम एवं लंबे रेशे वाली श्रेष्ठ किस्मों की कपास का उत्पादन होता है। मुख्यतः इसका उत्पादन प्रदेश के ग्वालियर, जबलपुर, भिण्ड, मुरैना, शिवपुरी, बैतूल, छिंदवाड़ा, इंदौर, उज्जैन, भोपाल और धार आदि जिलों में होता है। इसके लिए 20° से 30° सेंन्टीग्रेड तक उच्च तापमान, स्वच्छ आकाश, 6 महीने की ओला व पालारहित अवधि, चमकदार तेज धूप तथा 50 से 100 सें.मी. वर्षा की आवश्यकता होती है।

7. ज्वार –

  • यह कम वर्षा वाले भागों में पैदा की जाती है। इसके लिए उपजाऊ कॉप या चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके बढ़ने के लिए तापमान 25 से 30° सेंटीग्रेड तक होना चाहिए। ज्वार की फसल खरीफ की फसल है, जो जून-जुलाई में बोई जाती है तथा नवम्बर-दिसम्बर में काटी जाती है।

8. मूंगफली –

  • यह उष्णकटिबंधीय पौधा है एवं इसके लिए साधारणत: 75 से 150 सेंमी. तक वर्षा पर्याप्त होती है। यह अधिक वर्षा वाले भागों में भी पैदा की जाती है। इसका पौधा इतना मुलायम होता है कि ठंडे प्रदेशों में इसका उगना असम्भव है। साधारणतया इसे 15° से 25° सेंटीग्रेड तक तापमान की आवश्यकता होती है। फसल के लिए पाला हानिकारक है। यह हल्की मिट्टी में, जिसमें खाद दी गयी हो और पर्याप्त मात्रा में जीवांश मिले हों, खूब पैदा होती है। इसे तैयार होने में 6 माह लगते हैं, किन्तु अब 90-100 दिनों में तैयार हो जाने वाली उसकी नवीन किस्मों को बोया जाता है। इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्र मालवा का पठार और नर्मदा घाटी के निचले हिस्से हैं। मंदसौर, खरगौन और धार जिले इसकी खेती के प्रमुख क्षेत्र हैं।

9. अरहर –

  • यह फसल ज्वार, बाजरा, रागी आदि अन्य अनाजों के साथ मई से जुलाई तक बोई जाती है। यह 6 से 8 महीनों में अर्थात दिसम्बर से मार्च तक पक कर तैयार हो जाती है। इस फसल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र राज्य के पूर्वी व दक्षिणी हिस्से हैं। इंदौर, पन्ना, उज्जैन, टीकमगढ़, निवाड़ी, देवास, खंडवा, रीवा, सतना, छिंदवाड़ा, भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर, झाबुआ, धार, सागर, दमोह और छतरपुर जिलों में इसका उत्पादन होता है।

10. चना –

  • इसकी खेती के लिए हल्की बलुई मिट्टी और ऊंचे तापमान की आवश्यकता होती है। पाला पड़ जाने से इसका फूल नष्ट हो जाता है। इसको बोते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। यह मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण फसल है। यह अक्टूबर में बोयी जाती है तथा मार्च-अप्रैल में काटी जाती है। यह रबी की फसल है। इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र नरसिंहपुर, जबलपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, भिण्ड, मुरैना, उज्जैन, मंदसौर, गुना, विदिशा, इंदौर, देवास, रतलाम, झाबुआ, ग्वालियर, सीहोर, होशंगाबाद, रायसेन आदि जिले हैं। चना उत्पादन की दृष्टि से मध्य प्रदेश का भारत में द्वितीय स्थान है।

11. सनई –

  • सनई एक रेशेदार पौधा होता है, जिसके रेशे सफेद और चमकीले होते हैं। इसके लिए उपजाऊ भूमि की आवश्यकता नहीं होती है। इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र छिंदवाड़ा, धार, होशंगाबाद, राजगढ़, सिवनी, खंडवा, खरगौन, मंदसौर, मंडला व छतरपुर हैं।
    उपर्युक्त फसलों के अतिरिक्त मेस्टा, अफीम और गांजा भी मध्य प्रदेश में पैदा किया जाता है। अफीम और गांजा नशीला पदार्थ है। इसका उत्पादन सरकार के बड़े नियंत्रण में होता है। अफीम दवाइयां बनाने के काम आती हैं। इसका प्रमुख उत्पादक क्षेत्र मंदसौर है। गांजे के पौधे से निकलने वाले रस को ‘चरस’ कहते हैं, जिसके सेवन, उत्पादन और विक्रय पर शासन का प्रतिबन्ध है।

कृषि जलवायु क्षेत्र –

  • राज्य में 11 उपकृषि जलवायु क्षेत्र एवं 5 फसलीय क्षेत्र हैं और । इनमें वर्षा 700 से 1600 मिली एवं कुल वर्षा का जून से सितंबर के महीनों में मानसून के माध्यम से लगभग 94 प्रतिशत प्राप्त होता है। वर्तमान में राज्य में कुल सकल बुआई क्षेत्रफल के 32.5 प्रतिशत क्षेत्रफल को सिंचाई की सुविधा प्राप्त है। थोड़े समय में भारी वर्षा का होना, बड़ी मात्रा में धरातल पर पानी का बहाव एवं इससे उपजाऊ भूमि का ह्रास और इसके फलस्वरूप शीत एवं ग्रीष्म फसलों के लिए नमी की उपलब्धता में कमी होना, भू-जल स्तर की कमी होना, बड़ा भू-भाग वर्षा पर आश्रित होना, फसलों की सघनता का कम होना, राज्य में लघु एवं सीमान्त किसानों का अधिक भाग होना, सिंचाई व्यवस्था के विकास एवं भूमि में पूंजी निवेश की कम क्षमता, राज्य में कृषि की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं। इसमें से कुछ गंभीर विषय राज्य में कृषि की उन्नति पर दबाव डालते हैं।
  • राज्य के 11 जलवायु क्षेत्रों का जिलेवार, भूमि प्रकार एवं सामान्य वर्षा के आधार पर विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। यह सारिणी राज्य में विभिन्न जिलों के कृषि उत्पादन की विविधता को भी प्रदर्शित करती है। तथापि यह पारंपरिक फसल क्षेत्रों से इस आधार पर भिन्न है, चूंकि पिछले कुछ वर्षों में फसल उत्पादन के रुझान में परिवर्तन आया है एवं कुछ नई फसलों को उगाने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है।

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