पृथ्वी की आतंरिक संरचना
पृथ्वी की आतंरिक संरचना
prithvi ki aantrik sanrachna
- पृथ्वी का आंतरिक भाग अदृश्य व अगम्य है। मनुष्य ने खनन एवं वेधन क्रियाओं के द्वारा इसके कुछ ही किलोमीटर तक के आन्तरिक भाग को प्रत्यक्ष रूप में देखा है । गहराई के साथ तापमान में तेजी से वृद्धि के कारण अधिक गहराई तक खनन व वेधन कार्य करना संभव नहीं है । भूगर्भ मे इतना अधिक तापमान है कि वह वेधन में प्रयोग किये जाने वाले किसी भी प्रकार के यंत्र को पिघला सकता है अतः वेधन कार्य कम गहराई तक ही सीमित है इसलिए पृथ्वी के गर्भ के विषय में प्रत्यक्ष जानकारी के मिलने मे कई कठिनाईयां आती है । ज्वालामुखी उद्गार से निकले लावा एवं गैस आन्तरिक संरचना के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी के अन्य स्त्रोत है, परन्तु यह निश्चय कर पाना कठिन होता है कि यह मैग्मा कितनी गहराई से निकला है । भूकम्प विज्ञान से भूगर्भ की संरचना के विषय में अधिक वैज्ञानिक व प्रमाणिक जानकारी प्राप्त होती है पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में जानकारी देने वाले साधनों को निम्न वर्गों में रखा जा सकता है
भूगर्भ की संरचना की जानकारी के साधन-
1. अप्राकृतिक साधन (Artificial Sources)
- तापमान (Temperature)
- दबाव (Pressure)
- घनत्व (Density)
2. उल्कापात (Meteorite Shower)
3. प्राकृतिक साधन (Natural Sources)
- ज्वालामुखी उद्गार (Volcanic Eruption )
- भूकम्प विज्ञान
1. अप्राकृतिक साधन (Artificial Sources)
- (अ) तापमान (Temperature) : भूगर्भिक सर्वेक्षणों से यह बात प्रमाणित होती है कि सामान्यतः पृथ्वी की सतह से केन्द्र की ओर प्रति 32 मीटर की गहराई पर 1°C तापमान बढ़ता है । तापमान की इस वृद्धि दर के अनुसार भूगर्भ में सभी पदार्थ पिघली हुई अवस्था मे होने चाहिए परन्तु वास्तव मे ऐसा नही होता है। अधिक गहराई के साथ बढ़ते दबाब के कारण चट्टानों के पिघलने का तापमान बिन्दु उतना ही ऊँचा होता जाता है एवं धरातल के नीचे तापमान के बढ़ने की दर पृथ्वी के केन्द्र की ओर घटती जाती है। इस गणना के अनुसार पृथ्वी केन्द्र का तापमान लगभग 2000°C से अधिक है ।
- (ब) दबाव (Pressure) : भूगर्भ में मोटी मोटी परतों के बढ़ते दबाव के कारण केन्द्र की ओर घनत्व बढ़ता जाता है । केन्द्र पर उच्च तापमान के कारण यहां पाये जाने वाले पदार्थों का द्रव रूप में होना स्वाभाविक है, परन्तु ऊपरी दबाव के कारण वह द्रव रूप ठोस का आचरण करता है अतः केन्द्र में अधिक दबाव व अधिक तापमान के कारण शैले प्लास्टिकनुमा ठोस है ।
- (स) घनत्व (Density) : पृथ्वी के केन्द्र की ओर निरन्तर दबाव बढ़ने व भारी पदार्थों के होने के कारण उसकी परतों का घनत्व भी बढ़ता जाता है। न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त के अनुसार सम्पूर्ण पृथ्वी का घनत्व 5.5 ( धरातल का घनत्व 2.6-3.3 gcm” एंव केन्द्र का औसत घनत्व 11 gcm) परिकलित किया गया है ।
2. उल्कापात (Meteorite Shower)
- उल्कापिण्ड (Meteorite) सौर्य परिवार के ही अंग है। ये ग्रहों की उत्पत्ति के समय अलग होकर अन्तरिक्ष में फैल गये थे । कभी-कभी ये उल्काएँ धरातल पर गिरती है। इस क्रिया को उल्कापात (Meteorite Shower) कहते हैं। इनके अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि उल्काओं की रचना में निकल और लोहा पाया जाता है। पृथ्वी भी सौर्य – परिवार की एक सदस्य है। पृथ्वी में चुम्बकत्व का गुण पाया जाता है, आन्तरिक भाग में निकल-मिश्रित लोहे के कारण पृथ्वी में यह गुण उत्पन्न हुआ है ।
3. प्राकृतिक साधन (Natural Sources)
- (अ) ज्वालामुखी उद्गार (Volcanic Eruption ) : ज्वालामुखी उद्गार से निकले तत्व व तरल मैगमा से यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी अन्दर का कुछ भाग तप्त व तरल मैग्मा अवस्था में है ।
- (ब) भूकम्प विज्ञान के साक्ष्य (Evidences of Seismology) : यह वह विज्ञान है जिसमें भूकम्पनीय तरंगों का सिस्मोग्राफ द्वारा अंकन करके अध्ययन किया जाता है । भूकम्प (Earthquake) भूपटल का आकस्मिक कम्पन्न है जो भूगर्भ में उत्पन्न होता है । भूकम्प मूल भूगर्भ में स्थित वह स्थान जहाँ से कम्पन्न सर्वप्रथम उत्पन्न होता है । भूकम्पीय तरंगे भूकम्प के समय भूकम्प की कम्पन द्वारा अपनाया गया मार्ग होती है ये तरंगे तीन प्रकार की होती है। प्राथमिक (P) तरंगे सबसे तीव्र गति से चलती है एवं ठोस, तरल व गैस तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती है, द्वितियक (S) तरंगे केवल ठोस पदार्थों के माध्यम से चलती है तरल पदार्थों से होकर नही गुजर सकती, धरातलीय (L) तरंगे धरातल पर ही चलती है एवं अधिकेन्द्र पर सबसे बाद मे पहुँचती है व सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं । भूकम्पीय छाया क्षेत्र भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° व 140° के बीच का क्षेत्र होता 2 / जहा कोई भी भूकम्पनीय तरंगे अभिलेखित नही होती है। (चित्र सं. 4.1)
स्वैस (Suess) का वर्गीकरण
- स्वैस के अनुसार भूपटल का ऊपरी भाग परतदार शैलों का बना है । इस भाग के नीचे स्वैस ने रासायनिक संघटन के आधार पर तीन परतों की स्थिती मानी है।
- सियाल (Sial) – – इस परत में सिलिका (Silica – Si) एवं एल्यूमिनियम ( Aluminum – al) की प्रधानता होती है इसलिए इस परत को सियाल (si+al = sial) कहा जाता है इसका औसत घनत्व 2.9 है व औसत गहराई 50 से 300 किलोमीटर है ।
- सीमा (Sima ) – इस परत में सिलिका (Silica – Si) एवं मैग्नेशियम की (Magnesium-ma) प्रधानता होती है इसलिए इस परत को सीमा (si+ma = sima) कहा जाता है । इसका घनत्व 2.9 से 4.7 हैं एंव गहराई 1000 से 2000 किलोमीटर तक विस्तृत है ।
- निफे (Nife) – इस परत मे निकल (Nickel-ni) व फेरीयम (Ferrium-Fe) की प्रधानता होती है इसलिए इस परत को निफे (ni + fe=nife) कहा जाता घनत्व 11 है एवं यह भूकेन्द्र तक विस्तृत है ।
वान डर ग्राक्ट का वर्गीकरण
वान डर ग्राक्ट (Van der Gracht) ने पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की चार परतें बताई हैं, जिनको निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है :
- बाह्य सिलिका पर्पटी (Outer Silica Crust)- इस परत की मोटाई महाद्वीपों के नीचे 60 किलोमीटर तक होती है, अटलाण्टिक महासागर के नीचे 20 किलोमीटर एवं प्रशान्त महासागर के नीचे 10 किलोमीटर तक है। इस परत का घनत्व 2.75 से 3.1 तक होता है। यह परत सिलिका, एल्यूमिनियम, पोटेशियम एवं सोडियम से बनी है ।
- आन्तरिक सिलिकेट परत तथा मैण्टल (Inner silicate layer and mantle) – इस परत की मोटाई 60 से 1200 किलोमीटर तक होती है । इस परत का घनत्व 3.1 से 4.75 है ।
prithvi ki aantrik sanrachna Questions And Answers in Hindi
प्रश्न 1. सियाल परत के संघटक तत्व हैं
(अ) सिलिका-मैग्नीशियम
(ब) सोडियम-एल्यूमीनियम
(स) सिलिका-एल्यूमीनियम
(द) सिलिका-लोहा
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उत्तर ⇒ { C }
प्रश्न 2. वान डर ग्राक्ट के अनुसार ऊपर की परत की अधिकतम गहराई है
(अ) 1200 किमी
(ब) 60 किमी
(स) 2900 किमी
(द) 200 किमी
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उत्तर ⇒ { B }
प्रश्न 3. स्वैस के वर्गीकरण के परिप्रेक्ष्य में जो कथन गलत है, वह है
(अ) ऊपरी परत का घनत्व 2.7 है।
(ब) सीमा का घनत्व 4.7 से कम है।
(स) निफे में चुम्बकीय गुण पाया जाता है।
(द) सियाल निफे पर तैर रहा है।
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उत्तर ⇒ { D }
प्रश्न 4. सियाल, सीमा व निफे के रूप में भू-गर्भ का विभाजन किया गया था
(अ) वानडर ग्राक्ट द्वारा
(ब) डेली द्वारा
(स) होम्स द्वारा
(द) स्वैस द्वारा
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उत्तर ⇒ { D }
प्रश्न 5. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(अ) भूकम्पीय तरंगें
(ब) गुरुत्वाकर्षण बल
(स) ज्वालामुखी
(द) पृथ्वी का चुम्बकत्व
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उत्तर ⇒ { C }
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