राजस्थान के प्रमुख राजवंश ( परमार राजवंश )
राजस्थान के प्रमुख राजवंश
Rajasthan ke Pramukh Rajvansh ( Prmar Rajvansh )
3. परमार राजवंश
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2. प्रतिहार राजवश
- ‘परमार’ शब्द का अर्थ ‘शत्रु को मारने वाला होता है। राजस्थान में परमारों की शक्ति का प्रारम्भिक स्थल आबू था, तत्पश्चात् इनके साम्राज्य जालोर, किराडू, ओसियाँ, मालवा एवं वागड़ क्षेत्र में स्थापित हुए।
आबू के परमार
- आबू के परमारों का आदि पुरुष धूमराज, उत्पलराज का वंशज था। प्रारम्भ में इनको निकटवर्ती सोलंकियों से संघर्ष करना पड़ा, अंतत: मिलाप हो गया।
- गुजरात के सोलंकी राजा मूलराज ने दसवीं शताब्दी में आबू के शासक धरणी वराह परमार पर आक्रमण किया।
- भीमदेव सोलंकी ने आबू के राजा धंधुक परमार पर आक्रमण करके जीत प्राप्त की, तत्पश्चात भीमदेव एवं धंधुक में मेल हो गया। विमलशाह ने 1031 ई. में आबू के दिलवाड़ा गाँव में भगवान आदिनाथ का मंदिर (विमलवसाहि मंदिर) बनवाया।
- धंधुक के पश्चात् कृष्णदेव एवं विक्रमसिंह आबू के महत्त्वपूर्ण परमार शासक हुए, इनका वर्णन ‘कुमार पाल प्रबंध’ में मिलता है।
- विक्रम का प्रपौत्र ‘धारावर्ष’ एक प्रतापी शासक हुआ। उसने 60 वर्ष तक आबू पर राज किया तथा सोलंकियों से मधुर सम्बन्ध बनाए रखे। धारावर्ष पराक्रमी एवं वीर था, इसका प्रमाण अचलेश्वर महादेव (आबू पर्वत) के मंदाकिनी कुण्ड पर बनी हुई उसकी मूर्ति एवं समान रेखा में आरपार छिद्रित तीन भैंसों की मूर्तियाँ हैं। धारावर्ष का अनुज प्रहलादन वीर एवं विद्वान था। कवि सोमेश्वर द्वारा रचित ‘कीर्ति कौमुदी’ एवं ‘लूणवशाही मंदिर की प्रशस्ति’ में उसके गुणों की श्लाघा की गई है।
- प्रहलादन देव ने ‘प्रहलादनपुर नगर’ (वर्तमान पालनपुर, गुजरात) की स्थापना की तथा ‘पार्थ पराक्रम व्यायोग’ नामक नाटक की रचना की।धारावर्ष के पुत्र सोमसिंह के शासनकाल में आबू के दिलवाड़ा गाँव में वास्तुपाल एवं तेजपाल द्वारा भगवान नेमिनाथ का मंदिर (लूणवशाही मंदिर) बनवाया।
- प्रतापसिंह परमार ने मेवाड़ के जैत्रसिंह को हराकर चन्द्रावती पर अधिकार कर लिया।
- 1311 ई. में लुम्बा चौहान ने परमारों को हराकर चन्द्रावती को प्राप्त कर लिया, यहीं से आबू में परमार राज्य का अंत हुआ तथा देवड़ा चौहानों के साम्राज्य की स्थापना हुई।
जालोर के परमार
- आबू के परमारों की शाखा में वाकपतिराज, चन्दनदेवराज, अपराजित, विजल, धारावर्ष एवं विसल नामक राजा जालोर में हुए। वाकपतिराज का शासनकाल 960-985 ई. तक मिलता है। जालोर के वर्तमान दुर्ग का निर्माण परमारों ने करवाया।
किराडू के परमार –
- किराडू (बाड़मेर) के शिवालय पर उत्कीर्ण 1661 ई. के एक शिलालेख से यहाँ के शासकों कृष्णराज, सोच्छराज, उदयराज एवं सोमेश्वर के नाम ज्ञात हुए हैं।
मालवा के परमार
- आबू के परमारों की मालवा शाखा की सातवीं पीढ़ी में मुंज नामक प्रतापी शासक हुआ, जो अपनी दानशीलता, विद्वता एवं आश्रयप्रदाता के गुणों के लिए जाना जाता था।
- मुंज के पश्चात सिन्धुराज एवं भोज परमार (राजा भोज) हुए। राजा भोज अपनी दानशीलता, विद्यानुरागता एवं विजयों के लिए भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध हैं। उसके दरबार में वल्लभ, मेरूतुंग, वररुचि, सुबन्धु, अमर, राजशेखर, माघ, धनपाल, मानतुंग इत्यादि विद्वान आश्रय पाते थे।
- राजा भोज परमार ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण का विशाल मंदिर बनवाया।
- राजा भोज स्वयं एक विद्वान एवं कवि था, जिसने सरस्वती कंठाभरण, राजमृगांक, विद्वजन मण्डल, समरांगण, श्रृंगार मंजरी कथा एवं कूर्म शतक नामक ग्रंथ लिखे।
वागड़ के परमार
- मालवा शाखा के डम्बरसिंह ने वागड़ में परमार साम्राज्य का नींव डाली। इसी क्रम में कंकदेव, सत्यराज, मण्डलीक एवं विजयराज महत्त्वपूर्ण राजा हुए।
- वागड़ के परमारों की राजधानी उत्थूणक (अरथुना, बाँसवाड़ा) थी। यहाँ पर अनेक शैव, वैष्णव, शाक्त एवं जैन देवालयों के खण्डहर मिलते हैं जो स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं।
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