राजस्थान में किसान आन्दोलन ( Part :- 1 ) | ExamSector
राजस्थान में किसान आन्दोलन ( Part :- 1 )

राजस्थान में किसान आन्दोलन ( Rajasthan me Kishan Aandoln )

  • राजस्थान में किसान आन्दोलनों के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों में देश भर की बदली राजनीतिक परिस्थितियाँ, अंग्रेजों का आतंक, रियासतों की अव्यवस्था, जागीरदारों का शोषक रवैया एवं देश भर में चल रही राजनीतिक गतिविधियाँ महत्त्वपूर्ण थीं।

बिजौलिया किसान आन्दोलन (1897 से 1941 ई.)

  • बिजौलिया (वर्तमान भीलवाड़ा जिले में) ठिकाने की स्थापना राणा सांगा के समय अशोक परमार द्वारा की गई थी। यहाँ पर राजस्थान का प्रथम संगठित किसान आन्दोलन प्रारम्भ हुआ जिसका कारण जागीरदार द्वारा अधिक लाग-बाग वसूलना था।
  • 1897 ई. में ऊपरमाल क्षेत्र (बिजौलिया) के लोगों ने महाराणा मेवाड़ फतेहसिंह से जागीरदार के जुल्मों के विरुद्ध शिकायत करने हेतु नानजी व ठाकरी पटेल को भेजा लेकिन महाराणा ने इस पर ध्यान नहीं दिया और बिजौलिया के तत्कालीन ठाकुर राव कृष्ण सिंह ने नानजी व ठाकरी पटेल को निर्वासित कर दिया।
  • कृष्णसिंह के पुत्र राव पृथ्वीसिंह द्वारा तलवार बंधाई का लाग (नया ठाकुर बनने पर दिया जाने वाला कर) लागू करने पर साधु सीताराम दास, फतेहकरण चारण व ब्रह्मदेव के नेतृत्व में किसानों ने भूमि को पड़त रखकर विरोध करते हुए कोई कर नहीं दिया।
  • 1916 ई. में साधु सीताराम दास के आग्रह पर विजयसिंह पथिक (भूपसिंह) इस आन्दोलन से जुड़े तथा 1917 ई. में ‘ऊपरमाल किसान पंच बोर्ड’ की स्थापना की।
  • किसानों की मांगों का औचित्य जांच करने हेतु अप्रेल 1919 में गठित न्यायमूर्ति बिन्दुलाल भट्टाचार्य जांच आयोग की रिपोर्ट में लाग-बाग को समाप्त करने की अनुशंषा की गई। कानपुर से प्रकाशित ‘प्रताप’ समाचार पत्र (गणेशशंकर विद्यार्थी) के माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर इस आन्दोलन को उजागर किया गया।
  • कांग्रेस नेताओं के हस्तक्षेप से 1922 ई. में ए.जी.जी. हॉलेण्ड व किसानों के बीच समझौता हुआ जिसमें 84 में से 35 लाग माफ कर दिये।
  • 1927 ई. में पथिक जी के इस आन्दोलन से अलग होने पर इसका नेतृत्व जमनालाल बजाज व हरिभाऊ उपाध्याय ने संभाला। 1931 ई. में जमनालाल बजाज व मेवाड़ के प्रधानमंत्री सुखदेव प्रसाद के मध्य एक समझौता हुआ लेकिन उसका ईमानदारी से पालन नहीं किया।
  • 1941 ई. में मेवाड़ के प्रधानमंत्री टी.वी. राघवाचार्य ने राजस्व विभाग के मंत्री डॉ. मोहन सिंह मेहता को बिजौलिया भेजकर किसानों की माँगें मानकर जमीनें वापस कर दीं, इसके बाद बिजौलिया आन्दोलन समाप्त हो गया।

बेगूं किसान आन्दोलन –

  • चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित बेगूं ठिकाने के किसानों ने अपने जागीरदार के विरुद्ध आन्दोलन शुरू किया जिसका नेतृत्व रामनारायण चौधरी ने किया।
  • मई, 1921 ई. में बेगूं ठिकाने के कर्मचारियों ने चाँदखेड़ी नामक स्थान पर सभा में किसानों पर अमानुषिक व्यवहार किया।
  • बिजौलिया आन्दोलन से प्रेरित बेगूं के किसानों ने मेनाल में एकत्रित होकर लाग-बाग व लगान को न्यायपूर्ण बनाने के लिए संघर्ष करने का आह्वान किया।
  • दो वर्षों के संघर्ष के पश्चात बेगूं ठाकुर अनूपसिंह व किसानों के मध्य समझौता हुआ लेकिन इसे ‘बोल्शेविक’ की संज्ञा दी गई। सरकार ने जाँच हेतु ट्रेंच आयोग का गठन किया। 13 जुलाई, 1923 में किसानों की सभा पर सेना द्वारा लाठीचार्ज करने पर रूपाजी एवं कृपाजी धाकड़ शहीद हो गये।
  • इसके पश्चात् पथिकजी इस आन्दोलन से जुड़े। आन्दोलन के कारण बन रहे दबाव के फलस्वरूप बन्दोबस्त व्यवस्था लागू कर लगान की दरें कम की एवं अधिकांश लागें वापस लीं व बेगार प्रथा समाप्त की।

इने भी जरूर पढ़े –

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Leave A Comment For Any Doubt And Question :-

One response to “राजस्थान में किसान आन्दोलन ( Part :- 1 )”

  1. D says:

    yeh content kaha se liyya?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *