1857 की क्रांति एंव राजस्थान | ExamSector
1857 की क्रांति एंव राजस्थान

Revolution of 1857 and Rajasthan ( 1857 की क्रांति एंव राजस्थान )

–सन् 1818 के बाद राजस्थान में ब्रिटिश आधिपत्य स्थापित होने के पश्चात् अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के फलस्वरूप 1857 ई. तक राजस्थान आर्थिक रूप से कंगाली की हालत में पहुँच गया था। अतः जनसाधारण अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोशित था।
–29 मार्च, 1857 को मंगल पांडे द्वारा बैरकपुर की छावनी में विद्रोह करने तथा 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी से 1857 की क्रांति का बिगुल बजने पर राजस्थान में भी क्रांति का दीप प्रज्वलित हो गया।
–नसीराबाद की छावनी की 15वीं नैटिव इंफैन्ट्री ने 28 मई, 1857 को विद्रोह का झण्डा गाड़ दिया।

  • 1857 की क्रांति के समय राजस्थान में 6 स्थानों पर ब्रिटिश सैनिक छावनियाँ थीं-नसीराबाद, नीमच, देवली, ब्यावर, एरिनपुरा व खैरवाड़ा।
  • 1857 की क्रांति के समय राजस्थान में ए.जी.जी. (एजेन्टटू गर्वनर जनरल) जार्ज पैट्रिक लॉरेन्स था तथा मारवाड़ में मैक मोसन, मेवाड़ में मेजर शावर्स, जयपुर में कर्नल ईडन और कोटा में मेजर बर्टन पॉलिटिकल एजेन्ट थे।
  • नसीराबाद विद्रोह की सूचना मिलने पर नीमच में सैनिक अधिकारी कर्नल एबॉट द्वारा सभी सैनिकों को वफादारी की शपथ दिलाई गई जिसका सैनिक अलीबेग द्वारा विरोध किया गया और 3 जून, 1857 को नीमच में विद्रोह भड़क गया।
  • 21 अगस्त, 1857 को एरिनपुरा की छावनी ने आबू में विद्रोह कर दिया और ‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’ का नारा देते हुए दिल्ली की ओर रवाना हुए।
  • 23 अगस्त, 1857 में जोधपुर लीजियन में शीतल प्रसाद, मोती खाँ और तिलक राम नामक सैनिक विद्रोह का झण्डा फहरा कर दिल्ली की ओर जाते हुए आऊवा में ठहरे जहाँ आसोप, आलनियावास, गूलर, लांबिया, वन्तावास और रूपावास के जागीरदार भी अपनी सेना के साथ क्रांतिकारियों से आ मिले। इन क्रांतिकारियों ने आऊवा ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत के नेतृत्व में जोधपुर महाराजा तख्तसिंह व कैप्टन हीथ कोट की सेना को बिथौड़ा (पाली) के युद्ध में 8 सितम्बर, 1857 को हराया जिसमें जोधपुर का किलेदार अनार सिंह मारा गया। तत्पश्चात इन्होंने 18 सितम्बर, 1857 को चेलावास (आऊवा) के यही ए.जी.जी. लोरेन्स को हराया तथा मारवाड़ पॉलिटिकल एजेन्ट मैकमोसन का सिर काटकर आऊवा के किले में दरवाजे पर लटकाया। यह युद्ध काले-गोरों का युद्ध’ भी कहलाता है।
  • आऊवा विद्रोह की खबर दिल्ली पहुंचने पर लॉर्ड केनिंग ने कर्नल होम्स को विशाल सेना के साथ आऊवा भेजा जिसने 20 जनवरी, 1858 के विद्रोह को दबा दिया। आऊवा में लूटमार की एवं सुगाली माता (आऊवा की कुल देवी) की मूर्ति अजमेर ले गये। आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह ने कोठारिया के रावत जोधासिंह के यहाँ शरण ली तथा 8 अगस्त, 1860 को नीमच में अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इसकी जाँच हेतु गठित ‘टेलर कमीशन’ की रिपोर्ट पर उन्हें 10 नवम्बर, 1860 को रिहा कर दिया।
  • कोटा में विद्रोह-कोटा में 15 अक्टूबर 1857 में लाला जयदयाल व मेहराब खां के नेतृत्व में सैनिकों ने विद्रोह करके मेजर बर्टन व उनके दो पुत्रों तथा डॉ. कॉटम की हत्या करके मेजर बर्टन के सिर को शहर में घुमाया। विद्रोहियों ने कोटा महाराव रामसिंह को नज़रबंद करके 6 माह तक कोटा को अपने कब्जे में रखा जिन्हें करौली की सेना की सहायता से आजाद कराया गया।
  • धौलपुर में विद्रोह राव रामचन्द्र व हीरालाल के नेतृत्व में हुआ, वे जोधपुर की तोपें लेकर आगरा भाग गये जिसका दमन 2 माह पश्चात पटियाला की सेना के सहयोग से किया।
  • 31 मई, 1857 को भरतपुर में विद्रोह होने पर मेजर मॉरीशन आगरा भाग गया।

तात्या टोपे का राजस्थान अभियान

  • तात्या टोपे ने सर्वप्रथम 8 अगस्त, 1857 को भीलवाड़ा से राजस्थान में प्रवेश किया जहाँ ‘कुआड़ा’ नामक स्थान पर जनरल राबर्ट्स की सेना से परास्त होकर अकोला, चित्तौड़ होता हुआ झालावाड़ पहुँचकर राणा पृथ्वीराज को हराकर झालावाड़ की सेना के साथ छोटा उदयपुर होता हुआ ग्वालियर चला गया। दूसरी बार तात्या टोपे राजस्थान में बाँसवाड़ा से प्रवेश कर 11 दिसम्बर, 1857 को बाँसवाड़ा को जीतकर सलूम्बर, भीण्डर होते हुए टोंक पहुँचा जहाँ अमीरगढ़ के किले के समीप टोंक की सेना को हराया। लेकिन मेजर ईडन द्वारा विशाल सेना के साथ टोंक रवाना होने पर नाथद्वारा चला गया। मानसिंह नरूका के द्वारा विश्वासघात करने पर नरवर के जंगलों में तात्या टोपे को पकड़ लिया गया जिन्हें 7 अप्रेल, 1859 को फाँसी दे दी गई।

इने भी जरूर पढ़े –

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Leave A Comment For Any Doubt And Question :-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *