मध्यप्रदेश की योजनाएं
मध्यप्रदेश की योजनाएं
(Schemes of Madhya Pradesh in Hindi)
मध्य प्रदेश में केन्द्र प्रवर्तित योजनाएं –
सूरजधारा योजना (दलहनी एवं तिलहनी फसलों के लिए) –
- इस योजना के अन्तर्गत तीन कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।
1. बीज अदला-
- बदली प्रदेश के सभी जिलों में संचालित सूरजधारा योजना के अन्तर्गत लघु एवं सीमान्त अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कृषकों को एक हेक्टेयर की सीमा तक उनके दलहन या तिलहन फसलों के परम्परागत बीज के बदले में उन्नत बीज उपलब्ध कराने की व्यवस्था है।
2. बीज स्वावलम्बन योजना –
- इसका उद्देश्य बीज उत्पादन में कृषकों को स्वावलम्बी बनाना। इसके अन्तर्गत कृषकों को उसके द्वारा धारित भूमि के 1/10 रकबे के लिए आधार बीज दिए जाने का प्रावधान है, जिससे कृषक के पास अगले वर्ष अपने क्षेत्र के लिए प्रमाणित बीज उपलब्ध हो सकें। कृषक को बीज के बदले 25 प्रतिशत की मात्रा का बीज या नगद राशि जमा करनी होगी।
3. बीज उत्पादन कार्यक्रम –
- कृषकों को प्रमाणित बीज उनके ही क्षेत्र में उत्पादित कर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है। इसमें शासकीय कृषि क्षेत्रों के 10 कि.मी. की परिधि में रहने वाले अनुसूचित जनजाति के लघु एवं सीमान्त कृषकों के खेतों पर तिलहन एवं दलहन फसलों का बीज उत्पादन कार्यक्रम किए जाने का प्रावधान है।
खेत तालाब योजना –
- यह 2006 से आरंभ हुई है। इसका उद्देश्य धरातलीय व भूमिगत जल की उपलब्धता बढ़ाकर कृषि का समस्त विकास करना है। यह योजना संपूर्ण मध्य प्रदेश में सभी वर्गों के किसानों को 50% अनुदान अथवा अधिकतम 16350 रु. प्रदान करती है।
यंत्रदूत ग्राम योजना –
- इस योजना का उद्देश्य यंत्रीकरण द्वारा कृषि उत्पादकता में वृद्धि कर आदर्श ग्रामों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना है। इस योजना के अंतर्गत 50 जिलों से 50 ग्राम चिन्हित किए गए हैं।
बीज ग्राम योजना –
- प्रदेश के समस्त जिलों के चयनित ग्रामों में यह योजना, कृषक स्तर पर उन्नत बीज उत्पादन के प्रति जागरूकता बढ़ाने, प्रशिक्षण तथा अधोसंरचना विकास आदि उद्देश्यों से संचालित की जा रही है। बीज उत्पादन एवं भंडारण तकनीकी हेतु प्रशिक्षण आदि योजना के प्रमुख घटक हैं।
- यह योजना सही वर्ग के कृषकों हेतु लागू है। जिला कृषि कार्यालय के मार्गदर्शन मं् वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी द्वारा अपने विकास खंड के चयनित ग्रामों में योजना का क्रियान्वयन ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के माध्यम से किया जाता है।
अनुदान-प्रत्येक चयनित कृषक को आधा एकड़ के लिए 50 प्रतिशत अनुदान पर आधार/प्रमाणित बीज प्रदान किया जाता है। योजना के तहत प्रशिक्षण में 3 प्रमुख अवस्थाओं (बोने के समय, फूल अवस्था तथा कटाई के समय) में कृषकों को प्रशिक्षण दिए जाते हैं।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कृषकों को प्रशिक्षण हेतु मार्गदर्शन व निर्देश –
- कृषि उत्पादन बढ़ाने में प्रशिक्षण एवं भ्रमण की अहम् भूमिका को दृष्टिगत रखते हुए वर्ष 2007-08 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कृषकों हेतु एक नवीन योजना तैयार की गयी है, जिसमें प्रशिक्षण, भ्रमण के माध्यम से इस वर्ग के कृषक को कृषि तकनीकी की व्यावहारिक जानकारी देकर, उनके कृषि उत्पादन को बढ़ाकर जीवन स्तर में सुधार लाया जा सकेगा।
प्रमुख वृहद् परियोजनाएं
1. बाणसागर परियोजना –
- बाणसागर परियोजना मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्यों की एक संयुक्त अंतर्राज्यीय वृहद परियोजना है, जिसके शीर्ष कार्य (बांध भू-अर्जन एवं पुनर्वास) तीनों राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से क्रियान्वित किए जा रहे हैं। परियोजना का निर्माण भारत सरकार के त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत केंद्रीय ऋण सहायता से किया गया है। परियोजना में तीनों सहभागी राज्यों-मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार का वित्तीय सहयोग 2:1:1 के अनुपात में है तथा जलाशय में संचित जल का लाभ भी इसी अनुपात में है। मध्य प्रदेश राज्य के शहडोल जिले के देवलोंद नामक स्थान पर निर्मित बांध की ऊंचाई 67 मीटर एवं लंबाई 1020 मीटर है। परियोजना में मध्य प्रदेश के रीवा, सीधी, सतना एवं शहडोल जिलों की 2.49 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की, उत्तर प्रदेश के 1500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की तथा बिहार के 310 वर्ग किमी. क्षेत्र में सिंचाई प्रस्तावित है। परियोजना से 425 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जा रहा है तथा 975 मीट्रिक टन वार्षिक मत्स्य उत्पादन का लक्ष्य है। मत्स्य महासंघ द्वारा वर्ष 2000-2001 से मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है। बाणसागर परियोजना की आधारशिला 14 मई, 1978 को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा रखी गई थी। और 25 सितंबर, 2006 को स्व. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा देश को समर्पित किया गया था।
2. राजीव सागर (बावनथड़ी) परियोजना –
- राजीव सागर (बावनथड़ी) परियोजना जिला बालाघाट में मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र राज्य की एक अंतर्राज्यीय वृहद परियोजना है। बांध का निर्माण कार्य दोनों राज्यों के द्वारा अपने जिलों में वित्तीय सहयोग से किया गया है तथा नहरों के कार्य दोनों राज्यों द्वारा अपने अपने व्यय से किए जाते हैं। परियोजना से प्रदेश के बालाघाट जिले के 29.412 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो रही है। परियोजना की लागत राशि रुपए 1407 करोड़ 19 लाख आयी है। यह 31 मीटर ऊँचा और 6 किलोमीटर तथा 420 मीटर लंबाई का बनाया गया है।
3. माही परियोजना –
- माही परियोजना आदिवासी क्षेत्र के जिला धार एवं झाबुआ में त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया है। माही नदी मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात से होकर बहती है। इस परियोजना की नींव तत्कालीन वित्तमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा रखी गई थी। मुख्य बांध का निर्माण माही की सहायक नदी पर हुआ है। परियोजना के अंतर्गत मुख्य बांध से झाबुआ जिले की 18530 हेक्टेयर तथा उपबांध से धार जिले की 7900 हेक्टेयर तथा कुल 26430 हेक्टेयर क्षेत्र में वार्षिक सिंचाई हो रही है।
4. सिंध परियोजना –
- (i) इस परियोजना को वर्ष 1999-2000 में त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत सम्मिलित किया गया, जिसके अंतर्गत उक्त समस्त कार्य का निर्माण प्रस्तावित है। त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत 162100 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता निर्मित करना प्रस्तावित है। हरसी उच्च स्तरीय नहर से 74,650 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई प्रस्तावित है। वर्ष 1975 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरेन्द्र कुमार सकलेचा एवं महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शरद पवार द्वारा इस बांध की परियोजना की आधारशिला रखी गई थी और वर्ष 2012 के मई में इस बांध का कार्य शुरू हो गया। इस परियोजना के अंतर्गत 5 नहर प्रणालियां भी जुड़ी हुई हैं। जुलाई 2017 से परियोजना का कार्य शुरू हो गया है। सिंध परियोजना से ग्वालियर की नगर जलापूर्ति होती है, साथ ही 35200 हेक्टेयर क्षेत्र पर सिंचाई होती है।
- (ii) सिंध परियोजना (द्वितीय चरण) अंतर्गत मड़ीखेड़ा में बांध और बिजली घर का लोकार्पण जुलाई 2017 को हो गया है। बाईं तट नहर (दोआब) दाईं तट नहर तथा उकायला नहर प्रणाली एवं हरसी उच्च स्तर नहर निर्माण प्रस्तावित है। परियोजना की वर्तमान अनुमानित लागत रुपए 2033.92 करोड़ है। परियोजना से ग्वालियर, शिवपुरी तथा दतिया जिलों की 1.62 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई प्रस्तावित है। इसके अतिरिक्त परियोजना से 60 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी प्रस्तावित है। विद्युत उत्पादन दिनांक 28 जुलाई 2006 से प्रारंभ कर दिया गया।
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