यौन विकास – Sexual Development in Hindi
यौन विकास – Sexual Development in Hindi
Sexual Development in Hindi
यौन विकास :
किशोरावस्था में शारीरिक विकास के साथ-साथ यौन विकास भी प्रारम्भ हो जाता है | यौवनारम्भ काल (Puberty stage) से ही यौन अंगों में बदलाव शुरू हो जाते हैं और किशोरावस्था के दौरान पूर्ण हो जाते हैं । किशोरावस्था में होने वाले बदलावों को दो भागों में बॉटा जा सकता है :–
i. मुख्य लैंगिक लक्षण (Primay sex characteristics) :
- बाल्यावस्था में जननेन्द्रियाँ छोटी और अपरिपक्व होती हैं, अतः उनमें संतानोत्पादन की क्षमता नहीं होती है। किशोरावस्था के दौरान जननेन्द्रियाँ बड़ी एवं परिपक्व हो जाती हैं |
- पुरूष जननग्रंथियाँ – वृषणकोष के अंदर रहती हैं, जो कि 20-21वें वर्ष में परिपक्व आकार प्राप्त कर लेती हैं। ये ग्रंथियाँ शुक्राणु का निर्माण करती हैं तथा साथ ही संतानोत्पादन के लिये आवश्यक शारीरिक एवं मानसिक समायोजनों पर नियंत्रण करने वाले हार्मोन जैसे टेस्टेस्टेरोन आदि भी उत्पन्न करती हैं जो पुरूषोचित शरीर रचना एवं उसके विकास करने में सहायक होता है |
- स्त्री जननेन्द्रियाँ – अधिकांशत: शरीर के अन्दर होती हैं, अतः उनकी वृद्धि का पता उदर की वृद्धि के अलावा और किसी बात से नहीं चलता | अंडाशय 20 से 21 वे वर्ष तक परिपक्व आकार व भार प्राप्त कर लेते हैं अंडाशय का मुख्य कार्य डिंब पैदा करना है, जो कि संतानोत्पादन के लिये आवश्यक है | इसके अलावा यह गर्भावस्था का नियामक हार्मोन-प्रोजेस्टेरौन, पुटक हार्मोन, कार्पस ल्युटियम आदि का भी निर्माण करता है | स्त्री हार्मोन के कारण ही स्त्रियोचित शरीर की रचना एवं कार्यों का विकास होता है, उनके लाक्षणिक आर्तव चक्र (Menstruation cycle) चलते हैं व गौण लैंगिक लक्षण विकसित होते है | यह आर्तव चक्र रजोनिवृत्ति तक नियमितता के साथ प्रत्येक 28-30 दिन का होता हैं । रजोनिवृत्ति 45 से 55 वर्ष के बीच में कभी भी हो सकती है | आर्तव चक्र प्रारम्भ होने पर प्रथम 6 माह से 1 वर्ष तक रजः स्त्राव अनियमित रूप से और अनुमानित समयों पर कभी कम व कभी अधिक मात्रा में होता है । इस अवस्था में डिंब विकास (अर्थात डिंब का परिपक्व होना) एवं अंडाशय के पुटक से डिंब का मोचन नहीं होता, फलतः लड़की गर्भवती नही हो सकती और बंध्या कहलाती है। शुरू के रज: स्त्रावों में प्रायः सिरदर्द, पीठ दर्द, ऐंठन एवं उदरशूल होता है और साथ में चक्कर आना, मतली, त्वचा-प्रदाह, और यहाँ तक कि टाँगों और टखनों में शोथ भी हो जाता है | धीरे-धीरे ये लक्षण कम होते जाते हैं |
2. गौण लैंगिक लक्षण (Secondarysex characteristics) :
- यौवनारम्भ में प्रगति के साथ-साथ लड़के एवं लड़कियाँ आकृति में असमान होते जाते हैं जिसका कारण मुख्य लैंगिक लक्षणों के विकास के साथ-साथ द्वितीयक / गौण लैंगिक लक्षणों का विकास होना है। लड़के व लड़कियों में गौण लैंगिक लक्षणों का क्रमिक विकास निम्नानुसार होता है —
लड़कों में यौन विकास:
- बगल, बाँहों, कंधों, टाँगों एवं अन्य स्थानों में तथा चेहरे बाल उगना एवं दाढ़ी मूंछ आना |
- सभी तरह के बालों का प्रारम्भ में हल्के रंग, थोड़े व मुलायम होना तथा तत्पश्चात् घने, कड़े, काले रंग के एवं घुमावदार हो जाना |
- त्वचा का कठोर, मोटी एवं पीलापन लिये हुए खुरदुरी हो जाना |
- तेल ग्रंथियों की अत्यधिक सक्रियता से कील मुँहासे होना |
- बगल की गंधोत्सर्गी स्वेद ग्रंथियों का सक्रिय होना जिससे बगल में पसीना आता है एवं एक खास गंध निकलती है।
- स्वर का पहले फटना एवं फिर भारी होना |
- दुग्ध ग्रंथियों का अल्प काल के लिये बढ़ जाना एवं तत्पश्चात् बाल्यावस्था की तरह चपटे हो जाना |
लड़कियों में यौन विकास :
- वसा के जमाव के कारण छाती की सतह का उभरना।
- दुग्ध ग्रंथियों के विकास के कारण स्तन ग्रन्थियों में भारीपन आना |
- बगलों एवं अन्य स्थानों पर बाल उगना तथा बगल की गंधोत्सर्गी स्वेद ग्रंथियों का सक्रिय होना |
- ऊपरी होंठ, गालों, चेहरे के किनारों एवं तत्पश्चात् ठोड़ी के निचले किनारे पर रोएँ उगना |
- त्वचा की तेल ग्रंथियों का सक्रिय होना एवं कील मुँहासे निकलना |
- आवाज का पतली एवं सुरीली हो जाना |
- इस प्रकार मुख्य व गौण लैंगिक लक्षणों के विकास के पूर्ण होने के साथ ही एक किशोर युवा तथा किशोरी युवती बन जाती है ।
Important Point :
- बालक का शारीरिक विकास उसके व्यक्तित्व का आधार है |
- गर्भावस्था तथा शैशवावस्था के बाद किशोरावस्था में वृद्धि व विकास की दर तीव्रतम होती है |
- बालक-बालिका में वृद्धि समय भिन्न-भिन्न होता है। बालिकाओं में वृद्धि स्फुरण 11.5 वर्ष के आस-पास प्रारम्भ होकर 12.5 वें वर्ष में अपने शिखर पर पहुँचता है जबकि बालकों में वृद्धि स्फुरण 10.5 से 11.5 वर्ष के बीच शुरू होकर 15.5 वें वर्ष में शिखर पर पहुंचता है ।
- नौ से दस वर्ष की उम्र के दौरान लड़के व लड़कियों का कद लगभग बराबर सा होता है | तत्पश्चात् 10-14 वर्ष के बीच लड़कियों की लम्बाई में तीव्र वृद्धि होती है जबकि लड़कों की लम्बाई की तीघ्र वृद्धि दर औसतन 12 वें से 15 वें वर्ष के बीच होती है |
- किशोरावस्था में भार वृद्धि केवल वसा की वृद्धि से ही नहीं होती बल्कि अस्थि और पेशी के ऊतकों की वृद्धि से भी होती है |
- लड़कियों में सत्रह वर्ष की अवस्था में अस्थियाँ आकार और विकास की दृष्टि से परिपक्व हो जाती हैं तथा लड़कों में अस्थि पंजर का विकास लगभग दो वर्ष बाद पूरा होता है |
- यौवनारम्भ होने पर शरीर बढ़ता जाता है तथापि शरीर के सारे अंग समान रफ्तार से नहीं बढ़ते हैं | फलतः बाल्यावस्था के लाक्षणिक विषमानुपात बने रहते हैं |
- यौवनारम्भ के समय जो वृद्धि स्फुरण शुरू होता है वह पूर्व किशोरावस्था में घटती हुई दर से चलता रहता है तथा उत्तर किशोरावस्था में धीरे-धीरे रुक जाता है।
- किशोरों के आंतरिक अंगों में आनुपातिक वृद्धि व विकास होता है जो कि पूर्व किशोरावस्था में तीव्र गति से होता है।
- किशोरावस्था में विविध कौशलों को सीखने का और जब तक सीख न लें तब तक अभ्यास करते रहने का अभिप्रेरण बहुत प्रबल होता है |
- बड़े किशोर अधिकतर शारीरिक बल वाले खेल, प्रतियोगिताओं व व्यायाम संबंधी कौशलों में सक्रिय भाग लेने में अत्यधिक रुचि रखते हैं जबकि किशोरियाँ अधिक से अधिक पेचीदे ढंग से नृत्य करने, गोता लगाने और ऐसे अन्य खेलों में आनन्द लेती हैं जिनमें बल से कहीं अधिक महत्व पेशीय समन्वय का होता है|
- किशोरावस्था में शारीरिक विकास के साथ-साथ यौन विकास भी प्रारम्भ हो जाता है | किशोरावस्था के दौरान जननेन्द्रियाँ आकार में बड़ी एवं कार्य की दृष्टि से परिपक्व हो जाती हैं |
- लड़के व लड़कियों दोनों में ही जननेन्द्रियाँ यौवनारंभ काल के मध्य के आस पास अपने कार्य के लिये परिपक्व हो जाती है लेकिन 20-21 वर्ष के होने तक परिपक्व आकार प्राप्त कर लेती हैं |
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