Spherical mirror in hindi
गोलीय दर्पण (Spherical mirror)
- समतल दर्पण के अतिरिक्त ऐसे दर्पण भी होते हैं जिनके पृष्ठ वक्र होते हैं। इस तरह के दर्पणों में हमें प्रतिबिम्ब एक भिन्न आकृति की तरह दिखाई देता है | प्रतिबिम्ब की आकृति दर्पण के वक्र पृष्ठ की प्रकृति पर निर्भर करती है । ऐसे दर्पण जिनके परावर्तक पृष्ठ गोलीय होते हैं, गोलीय दर्पण कहलाते हैं । हम इनके पृष्ठ को किसी खोखले गोले का भाग मान सकते हैं। गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं | ऐसे परावर्तक पृष्ठ जो अन्दर की ओर वक्रित है अवतल दर्पण कहलाते हैं | सुरक्षा की दृष्टि से इनके बाहरी अर्थात् पश्च (Back) उत्तल पृष्ठ पर परावर्तक आवरण (चांदी अथवा एल्युमीनियम की परत) लगाने के बाद उन पर रंग भी कर दिया जाता है।
- वैज्ञानिक उपकरणों में यथार्थ प्रेक्षण (Accurate observation) लेने के लिये अवतल दर्पण के बाहरी उत्तल पृष्ठ पर परावर्तक आवरण लगाने के बजाय इस के अन्दर के पृष्ठ पर परावर्तक आवरण लगाते हैं। इन्हें अग्र विलेपित दर्पण (Front coated mirror) कहते हैं | ऐसे गोलीय पृष्ठ जिनका बाहरी भाग दर्पण के परावर्तक पृष्ठ की तरह उपयोग में लिया जाता है उन्हें उत्तल दर्पण कहते हैं। इसके लिये वक्र पृष्ठ के अन्दर की सतह पर परावर्तक आवरण लगाने के बाद वहां रंग कर दिया जाता है ताकि बाहरी उत्तल तल से ही परावर्तन हो |
- जब एक समान्तर किरण-पुंज अवतल दर्पण से परावर्तित होती है तो परावर्तन के पश्चात् किरण-पुंज अभिसारित (Converge) होकर दर्पण के सामने एक बिन्दु पर मिलती है । इस बिन्दु को अवतल दर्पण का फोकस कहा जाता है | उत्तल दर्पण पर जब किरण पुंज आपतित होती है तो परावर्तन के पश्चात् अपसारित (Diverge) हो जाती है | इन परावर्तित किरणों को पीछे बढ़ाने पर वे दर्पण के पीछे एक बिन्दु पर मिलती हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि परावर्तित किरणें इस बिन्दु से आ रही हैं । इस बिन्दु को उत्तल दर्पण का फोकस कहा जाता है। दर्पण के वक्र पृष्ठ के मध्य बिन्दु को हम ध्रुव कहते हैं । गोलाकार दर्पण को हम गोले का ही एक भाग मान सकते हैं । उस गोले के केन्द्र को वक्रता केन्द्र (चित्र 9.6 में बिन्दु (”C”) एवं उसकी त्रिज्या को वक्रता त्रिज्या कहते हैं। वक्रता केन्द्र से ध्रुव की दूरी वक्रता त्रिज्या के बराबर होती है | ध्रुव तथा वक्रता केन्द्र को मिलाने वाली सरल रेखा को मुख्य अक्ष कहते हैं। किसी भी दर्पण के ध्रुव से फोकस की दूरी को फोकस दूरी कहा जाता है एवं उसे से दर्शाते हैं। बड़े गोलीय दर्पण में ध्रुव से दूरी बढ़ने के साथ – साथ किरणों के परावर्तन की दिशा बदलती रहती है जिससे उसकी तीव्रता समाप्त हो जाती है अर्थात वो एक फोकस पर नहीं मिलती है। अतः आगे के विवेचनों में हम उन गोलीय दर्पणों पर ही विचार करेंगे जिनकी वृत्ताकार सीमारेखा का व्यास या द्वारक (चित्र 9.6 में MN) उनकी वक्रता त्रिज्या से बहुत छोटा हो। समझने के लिये चित्रों में भले ही इनका द्वारक बड़ा दिख रहा हो। इन गोलीय दर्पणों की वक्रता त्रिज्या फोकस दूरी की दोगुनी होती है |
Spherical mirror in hindi FAQ –
1. निम्न में से कौनसे दर्पण में वृहद दृष्टि क्षेत्र दिखेगा
(क) समतल दर्पण
(ख) उत्तल दर्पण
(ग) अवतल दर्पण
(घ) परवलियक दर्पण
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2. प्रकाश का वेग सर्वाधिक होगा
(क) पानी में
(ख) कांच में
(ग) निर्वात में
(घ) ग्लिसरीन में
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3. किस प्रभाव के कारण टंकी के पेंदे पर रखा सिक्का थोड़ा ऊपर उठा हुआ दिखाई देता है
(क) अपवर्तन
(ख) परावर्तन
(ग) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन
(घ) इनमें से कोई नहीं
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4. यदि एक दर्पण की फोकस दूरी + 60 सेमी. है तो यह दर्पण होगा
(क) अवतल दर्पण
(ख) परवलिय दर्पण
(ग) समतल दर्पण
(घ) उत्तल दर्पण
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5. एक समतल दर्पण की फोकस दूरी होगी
(क) 0
(ख) 1
(ग) अनन्त
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर ⇒ ???????
प्रश्न 1. जब कोई वस्तु प्रकाश के सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है तो वह वस्तु हमें किस रंग की दिखाई देगी?
उत्तर- वह वस्तु हमें काली दिखाई पड़ती है।
प्रश्न 2. यदि हम समतल दर्पण में हमारा पूर्ण प्रतिबिम्ब देखना चाहें तो दर्पण की न्यूनतम लम्बाई कितनी होनी चाहिये ?
उत्तर- किसी व्यक्ति का पूरा प्रतिबिम्ब देखने के लिए उस व्यक्ति की लम्बाई की आधी लम्बाई का समतल दर्पण चाहिए।
प्रश्न 3. उत्तल दर्पण के कोई दो उपयोग लिखिये।
उत्तर-
- उत्तल दर्पण में बड़ी वस्तुओं के छोटे प्रतिबिम्ब प्राप्त करके सजावट के लिए उपयोग में लेते हैं।
- इनका उपयोग सामान्यतः वाहनों के पश्च दृश्य (wing) दर्पणों के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 4. अवतल दर्पण के कोई दो उपयोग लिखिये।
उत्तर-
- बड़ी फोकस दूरी का अवतल दर्पण हजामत बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है, जिससे व्यक्ति के चेहरे का आभासी, बड़ा और सीधा प्रतिबिम्ब बनता है।
- अवतल दर्पण परावर्तक दूरदर्शी में काम में लेते हैं। इससे दूरदर्शी की विभेदन क्षमता में वृद्धि होती है।
प्रश्न 5. दर्पण सूत्र लिखिये।
उत्तर- ध्रुव से बिम्ब की दूरी u, ध्रुव से प्रतिबिम्ब की दूरी v एवं ध्रुव से फोकस दूरी f ये तीनों राशियाँ एक समीकरण द्वारा सम्बद्ध हैं जिसे दर्पण सूत्र कहा जाता है।